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श्री बदरिकाश्रम की महिमा

Glory of Shri Badrikashram
सनातन धर्म में भगवान विष्णु का बद्री नामक क्षेत्र तीनों लोकों में दुर्लभ है, उसके स्मरण मात्र से महापात की मनुष्य भी तत्काल पाप रहित होकर मृत्यु के पश्चात् मोक्ष के भागी होते है। भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य में बदरिकाश्रम (बद्रीनाथ) पावन तीर्थ विराजमान है। पुराणों में श्री बदरिकाश्रम धाम की माहिमा का वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण के वैष्णवखण्ड में बदरी क्षेत्र की महिमा के बारे में भगवान शंकर जी के मुख से कार्तिकेय जी को बताया गया है। स्कंद पुराणानुसार बद्री क्षेत्र की महिमा के उपक्रम में शौनक जी सूत जी से प्रश्न करते हैं- समस्त धर्मज्ञों में श्रेष्ठ और सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्वज्ञ पुराणपरिनिष्ठित सूतजी! सब धर्मों से रहित भयंकर कलियुग प्राप्त होने पर मनुष्य दुष्कर्मों में प्रवृत्त हो सब धर्मों का त्याग कर देते हैं, उनकी आयु बहुत थोड़ी होती है, उनकी प्राणशक्ति, बल, पराक्रम, तपस्या और कर्मानुष्ठान सब अत्यंत क्षीण हो जाते हैं। वे सब अधर्म परायण और वेदशास्त्र से दूर होते हैं, तीर्थयात्रा, दान और भगवान विष्णु की भक्ति का उनमें अभाव-सा होता है। ऐसे क्षुद्र मनुष्यों का थोड़े प्रयास से किस प्रकार उद्धार हो सकता है ? सूत जी करते हैं- महाभाग शौनक! तुम्हें साधुवाद है, तुम सदा दूसरों के हित में तत्पर रहते हो, भगवान विष्णु की भक्ति में आसक्त होने के कारण तुम्हारे मन का मल धुल गया है। संसार में साधु पुरूषों का संग दुर्लभ हैं, वह देहाभिमानी अजिताम्मा पुरूषों की संचित पापराशि को हर लेता है और अधिक पुण्य के कारण उन्हें उत्तम गति प्रदान करता है। तीनों लोकों के मनुष्यों के लिए सत्संग दुर्लभ है, वह कर्मपाश से पीड़ित मनुष्यों की हृदय ग्रंथि को दूर करता है। बहुत कम बोलने वाले और एकमात्र भगवान का भजन करने वाले लोगों को उच्च पद प्रदान करता है और जन्म-मृत्यु के चक्र से थके हुए मानवों को चिर विश्राम की प्राप्ति कराने का कारण होता है। शौनक जी ! यही प्रश्न पूर्वकाल में परकम सुंदर कैलाश पर्वत शिखर पर स्रोता ऋषियों के समक्ष सत्पुरूषां का कल्याण करने के लिए स्वामी कार्तिकेय जी ने भगवान शंकर के आगे उपस्थित किया था। तब श्री महादेव ने कहा- षडानन! परमार्थ के पथ पर चलने वाले पुरूषों को बैकुण्ठ धाम निवास प्रदान करने वाले बहुत से तीर्थ और क्षेत्र हैं। कोई कामना के अनुसार फल देने वाले हैं और कोई मोक्षदायक हैं। स्वर्ग, पृथ्वी तथा रसातल में बहुत से तीर्थ हैं, परंतु बद्री तीर्थ के समान दूसरा कोई तीर्थ न हुआ है, न होगा। कार्तिकेय! तप योग और समाधि से तथा सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह ‘बद्री क्षेत्र’ के भली-भांति दर्शनमात्र से मिल जाता है। यह बद्री क्षेत्र अनादिसिद्ध है। जैसे वेद भगवान के शरीर हैं, उसी प्रकार यह भी है। इस क्षेत्र के अधिपति साक्षात भगवान नारायण हैं। नारद आदि महर्षियों ने इस तीर्थ का सेवन किया है। काशी में श्री पर्वत के शिखर पर तथा कैलाश में पार्वती सहित मेरी जैसी प्रीति है, उससे अनन्तगुनी अधिक ‘बद्री क्षेत्र’ में है। अन्य तीर्थों में स्वधर्म का विधिपूर्वक पालन करते हुए मृत्यु होने से मुक्ति होती है, परंतु बद्री क्षेत्र के दर्शनमात्र से ही मुक्ति मनुष्यों के हाथ आ जाती है। जहां भगवान नारायण के चरणों का सानिध्य है, जहां साक्षात अग्निदेव का निवास है और केदार रूप से मेरा लिंग प्रतिष्ठित है, वह सब बद्री क्षेत्र के अंतर्गत है। केदार में पूजन से मिलती है मुक्ति केदार के दर्शन, स्पर्थ तथा भक्तिभाव से पूजन करने पर कोटि-कोटि जन्मों का पाप तत्काल भस्म हो जाता है। उस क्षेत्र में विशेषतः मैं अपनी सम्पूर्ण कला से स्थित रहता हूं। काशी में मरे हुए पुरूषों का तारकब्रह्म मुक्ति देने वाला होता है, परंतु केदार क्षेत्र में मेरे लिंग के पूजन से मनुष्यों की मुक्ति हो जाती हैं। श्री नारायण के चरणों के समीप प्रकाशमान अग्नितीर्थ का तथा मेरे केदारसंज्ञक महालिंग का दर्शन करके मनुष्य पुनर्जन्म का भागी नहीं होता। पूर्वकाल में ऋषियों का समुदाय प्रयाग में एकत्र हुआ था। वहां भगवान अग्निदेव ने ऋषियों के आगे उपस्थित हो विनीतभाव से पूछा- आप लोगों को यहां उपस्थित देखकर मैं पूछता हूं, सब प्रकार की दूषित वस्तुओं के भक्षणजनक पातक से मेरा अन्तःकरण लिप्त हो गया है। ब्रम्हज्ञानियों! बताइए मेरा उद्धार कैसे होगा ? इतने में ही सब मुनियों में श्रेष्ठ व्यास जी गंगा में स्नान करके वहां आ पहुंचे और इस प्रकार बोले- अग्निदेव! आपके सर्वभक्षणरूप पाप की निवृत्ति के लिए एक श्रेष्ठ उपाय है। आप बद्री क्षेत्र की शरण लीजिए, जहां देवताओं के देवता साक्षात भगवान जनार्दन नारायण विराजमान हैं, जो सबके पापों का नाश करने वाले हैं। वहां गंगाजी के जल में स्नान करके भगवान की परिक्रमा और दण्डवत प्रणाम करने से सब पापों का क्षय हो जाता है। तब अग्निदेव बद्री तीर्थ में पहुंचकर गंगाजी के जल में स्नान करके भगवान नारायण के आश्रम गए। वहां पहुचकर भगवान को प्रणाम करके भक्तिपूर्वक स्तवन किया। स्तुति किए जाने पर सर्वांतर्यामी भगवान नारायण प्रसन्न होकर पवित्रता की इच्छा रखने वाले अग्निदेव से मुधरवाणी में बोले- अनघ! तुम्हारा कल्याण हो, तुम कोई वर मांगो। मैं तुम्हें वर देने के लिये आया हूं। अग्निदेव बोले-प्रभो ! मैं अग्नि रूप में आप जगदीश्वर की आज्ञा का पालन करता हूं। मुझे सर्वभक्षी तो होना ही पड़ता है, किंतु मेरे इस दोष का निवारण कैसे हो, यही सोचकर मुझे अत्यंत भय हो रहा है। Glory of Shri Badrikashram भगवान नारायण ने कहा कि इस बद्री क्षेत्र का दर्शन करने मात्र से किसी भी प्राणी का पाप नष्ट हो जाता है। मेरे प्रसाद से तुममें कभी पातक का सम्पर्क न होगा। तब से लेकर सब दोषों से रहित भूतात्मा अग्निदेव बद्री क्षेत्र में अपनी कला से विराजमान है। भगवान शिव कार्तिकेय जी से बोले- पहले सययुग के आदि में भगवान विष्णु सब प्राणियों का हित करने के लिए मूर्तिमान होकर रहते थे। त्रेतायुग में ऋषियों को केवल योगाभ्यास से दृष्टिगोचर होता था। द्वापर आने पर भगवान सर्वथा दुर्लभ हो गए, उनका दर्शन कठिन हो गया। तब देवता और मुनि बृहस्पति जी को आगे करके ब्रम्हाजी के लोक में गए और उन्हे प्रणाम करके बोले- पितामाह! आपको नमस्कार है। जब से द्वापर युग आया है, विशाल बुद्धि वाले भगवान विष्णु विशालपुरी (बदरिकाश्रम) में नहीं दिखाई देते है। इसका क्या कारण है, बतलाइउ ? ब्रम्हाजी बोले- देवताओं! मैं इस बात को नहीं जानता। आओ, हम लोग क्षीरसागर के तट पर चलें। क्षीरसागर तट पर पहुंचकर देवादिदेव जगदीश्वर विष्णु की स्तुति करने लगे। स्तुति करने पर भगवान विष्णु क्षीरसागर से ऊपर उठे। उन्हें केवल ब्रम्हाजी देख सके, अन्य लोगों ने न तो उन्हें देखा और न जाना ही। भगवान ने जो कुछ कहा, उसे ब्रम्हाजी ने सुना और भगवान को प्रणाम करके देवताओं को समझाया, उन्होंने कहा- देवताओं! सब लोगों की बुद्धि खोटी हो गई है। यह देखकर भगवान उनकी दृष्टि से छिप गए हैं। यह सुनकर सब देवता स्वर्गलोक को चले गए। तब मैंने (शिव जी ने) संन्यासी का रूप (आदि जगतगुरू शंकराचार्य) धारण करके नारदतीर्थ से भगवान विष्णु को उठाया और समस्त लोकों के हित की कामना से विशालपुरी में स्थापित कर दिया। उनके दर्शन मात्र से बडे़-बड़े पातक क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं। बदरीतीर्थ के स्वामी भगवान् श्री हरि का दर्शन पाकर अनायास ही मोक्ष पा जाते हैं। बदरी तीर्थ में साक्षात भगवान नारायण निवास करते हैं। कलियुग में जिन्हें पापों से मुक्ति, भोग एवं मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा हो, उन्हे बद्री क्षेत्र का दर्शन अवश्य करना चाहिए क्योंकि वहां ज्ञान और योग साधन के बिना ही केवल एक जन्म में मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेगा है। बद्री क्षेत्र में पग-पग पर भगवान विष्णु की प्रदक्षिणा होती हैं। बद्री क्षेत्र में भगवान विष्णु के प्रसाद का एक दाना भी मिल जाए तो वह भोजन करने पर समस्त पापों को उसी प्रकार शुद्ध करता है जैसे भूसी की आग सोने को तपाकर शुद्ध करती है। भगवान विष्णु नारद आदि ऋषियों के साथ जिस अन्न को ग्रहण करते हैं, वह प्रसाद अन्तःकरण की शुद्धि के लिए सबको बिना विचारे श्रद्धा से ग्रहण करना चाहिए। भगवान का प्रसाद ग्रहण करने के लिए देवता भी बद्री क्षेत्र में आते हैं और भगवान के भोजन कर लेने के बाद प्रसाद लेकर अपने लोक को लौट जाते हैं। इसी प्रकार प्रहलाद आदि भक्त वह प्रसाद लेकर भगवान के धाम में जाते हैं। बचपन, युवावस्था और बुढ़ापे में जान-बूझकर भी जो पाप किया गया है, वह बद्री क्षेत्र में जाकर भगवान विष्णु का प्रसाद भक्षण करने पर नष्ट हो जाता है। जिस पाप के लिए प्राणों का अंत कर देना ही प्रायश्चित बतलाया गया है, वह भी बद्री क्षेत्र में भगवान विष्णु का प्रसाद खाने से निवृत्त हो जाता है। जिसके हृदय में भगवान विष्णु का रूप, मुख में भगवान का नाम पेट में श्रीहरि का प्रसाद और मस्तक पर निर्माल्य सहित भगवान का चरणामृत है, वह विष्णु स्वरूप ही है। ब्रम्ह हत्या, मदिरापान, चोरी और गुरूपत्नीगमन, ये महापाप बदरी क्षेत्र में भगवान विष्णु का प्रसाद ग्रहण करने से नष्ट हो जाते हैं। पृथ्वी में जो तीर्थ, व्रत और नियम है, उनसे भी शीघ्र बद्री क्षेत्र में भगवान का चरणामृत पवित्र करने वाला है। यदि बद्री क्षेत्र में मनुष्य को एक बूंद भी भगवान का चरणामृत मिल जाए तो उसको क्या दुर्लभ है ? जिन मनुष्यां को अनायास ही मोक्ष के मार्ग पर जाने की इच्छा हो, उन्हें प्रयत्नपूर्वक बद्री क्षेत्र में भगवान विष्णु के प्रसाद का भक्षण करना चहिए। बद्री क्षेत्र में सन्यासियों को भोजन दान देने से अपराधी भी भगवान को प्रिय हो जाता है। दस बार वेदांत श्रवण से जो पुण्य मिलता है, वह बद्री तीर्थ के दर्शनमात्र में सन्यासियों को प्राप्त हो जाता है। ज्ञानी, अज्ञानी, सन्यासी अथवा व्रतपरायण सभी मनुष्यों को मनोअभिलाषित फल प्राप्ति के लिए बद्री नाथ क्षेत्र का अवश्य दर्शन करना चाहिए। ज्योतिर्विद लोकेन्द्र चतुर्वेदी