भारतवर्ष में अयोध्या पुरी परम पवित्र है। पापी मनुष्यों को इसकी प्राप्ति होनी बहुत कठिन है। पुराणानुसार अयोध्यापुरी सरयू नदी के तट पर बसी है, जिसमें साक्षात भगवान श्रीहरि निवास करते हैं। वह अयोध्या पुरी भला किसके सेवन योग्य नहीं है। अयोध्यापुरी सरयू नदी के पावन तट पर बसी है। वह दिव्य पुरी परम शोभा से युक्त है। प्रायः बहुत से तपस्वी महात्मा उसके भीतर निवास करते हैं। स्कन्द पुराणानुसार भगवान विष्णु के दाहिने चरण के अंगूठे से श्रीगंगाजी और बायें चरण के अंगूठे से शुभकारिणी सरयूजी निकली हैं। इसलिए ये दोनों नदियां परम पवित्र तथा सम्पूर्ण देवताओं से वंदित हैं। इनमें स्नान करने मात्र से मनुष्य ब्रह्महत्या का नाश कर डालता है।
अकार कहते हैं ब्रह्मा को, यकार विष्णु का नाम है और धकार रूद्रस्वरूप है, इन सबके योग से ’अयोध्या’ नाम शोभित होता है। समस्त उपपातकों के साथ ब्रह्महत्या आदि महापातक इस पुरी से युद्ध नहीं कर सकते, इसलिये इसे अयोध्या कहते हैं। यह भगवान विष्णु की आदिपुरी है और विष्णु के सुदर्शन चक्र पर स्थित है। अतएव पृथ्वी पर अतिशय पुण्यदायिनी है। इस पुरी में साक्षात भगवान विष्णु आदरपूर्वक निवास करते हैं। यह विष्णुपुरी मछली के आकारवाली बतलायी गई है। पश्चिम दिशा में गो-प्रतार तीर्थ से लेकर असी तीर्थ पर्यन्त इसका मस्तक है, पूर्व दिशा में इसका पुच्छ भाग है और दक्षिण एवं उत्तर दिशा में इसका मध्यम भाग है। सहस्रधारा तीर्थ से पूर्व दिशा में एक योजन तक और सम नामक स्थान से पश्चिम दिशा में एक योजन तक, सरयू तट से दक्षिण दिशा में एक योजन तक और तमसा से उत्तर दिशा में एक योजन तक इस अयोध्या क्षेत्र की स्थिति है। यही भगवान विष्णु का अन्तर्गृह है।
प्राचीनकाल में जगत्स्रष्टा ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु को अयोध्यापुरी में निवास करते देख स्वयं भी वहां रहने का निर्णय किया। उन्होंने वहां की यात्रा की और अपने नाम से एक विशाल कुण्ड बनाया, जो अनेक देवताओँ से संयुक्त तथा अगाध जलराशि की लहरों से सुशोभित था। कुमुद और कमल के पुष्पों से आच्छादित हुआ वह कुण्ड सब पापों का नाश करने वाला है। उस समय ब्रह्माजी ने कुण्ड के विषय में इस प्रकार कहा- ‘इसमें विधिवत स्नान करने से पापी जीव भी विमान पर बैठकर सुंदर व दिव्य वस्त्र से सुशोभित हो प्रलयकालपर्यन्त ब्रह्मलोक में निवास करेंगे। यहां यथाशक्ति दान करने से मनुष्य तुलादान और अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त कर लेंगे। इस तीर्थ में विधिपूर्वक किया हुआ स्नान, दान और जप आदि कर्म सम्पूर्ण यज्ञों के समान महापातकों का नाश करने वाला होगा।
यह कुण्ड ब्रह्मकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध होगा और इसके समीप मैं सदा निवास करूंगा।’ यह कहकर देवदेव व लोकपितामह ब्रह्माजी उस तीर्थ को देखकर देवताओं के साथ अन्तर्धान हो गए। ब्रह्मकुण्ड से पूर्व-उत्तर दिशा में कुछ दूरी पर सरयूजी के जल में ऋणमोचन नामक तीर्थ विद्यमान है। वहां पूर्वकाल में तीर्थयात्रा के प्रसंग से आए हुए मुनिवर लोमश ने विधिपूर्वक स्नान किया था। इससे वे ऋणमुक्त एवं पापशून्य हो गए। तब उन्होंने अपनी दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर हर्ष से आंसू बहाते हुए कहा था कि यह ऋणमोचन नामक तीर्थ बहुत उत्तम है। मनुष्य इहलोक और परलोक के जो तीन प्रकार के ऋण हैं, वे सब इस तीर्थ में स्नान करने मात्र से क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। इसलिए यहां फल की इच्छा रखने वाले मनुष्यों को श्रद्धापूर्वक विधि के साथ यथाशक्ति स्नान और दान करना चाहिए। इस प्रकार तीर्थ का माहात्म्य बतलाकर मुनिश्रेष्ठ लोमश उसके गुण की प्रशंसा करते हुए अन्तर्धान हो गए। अयोध्यापुरी में ऋणमोचन तीर्थ से पूर्व दिशा में कुछ दूरी पर पापमोचन तीर्थ है। यह भी सरयू के जल में ही है।
वहां स्नान करने से मनुष्य उसी क्षण सब पापों से मुक्त हो शुद्ध चित्त होने लगता है। मनुष्यों को सब पाप की शुद्धि के लिए वहां माघ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को विशेषरूप से स्नान और दान करना चाहिए। अन्य समय में भी स्नान करने पर सब पापों का क्षय हो जाता है। पापमोचन तीर्थ से पूर्व दिशा में कुछ दूरी पर सहस्रधारा नामक उत्तम तीर्थ है, जो सब पापों का नाश करने वाला है। उसी में शत्रु-वीरों का नाश करने वाले वीरवर लक्ष्मण जी एवं श्री रामचन्द्र जी की आज्ञा से योगशक्ति द्वारा प्राण त्यागकर अपने शेष नामक स्वरूप को प्राप्त हुए थे। इस तीर्थ में मनुष्य श्रद्धापूर्वक स्नान, दान और श्राद्ध करने से सब सब पापों से शुद्ध हो भगवान विष्णु के लोक में जाता है। जो वैशाख मास में एकाग्रचित होकर यहां स्नान करते हैं, उनकी पुनरावृत्ति नहीं होती। सरयू और घाघरा के संगम में दस कोटिसहस्र तथा दस कोटिशत तीर्थ हैं।
उस संगम के जल में स्नान करके एकाग्रचित हो देवताओं और पितरों का तर्पण करने से तथा यथाशक्ति दान करने से विष्णुलोक की प्राप्ति होती थी। जैसे काशी में मणिकर्णिका, उज्जयिनी में महाकाल मंदिर तथा नैमिषारण्य में चक्रवापीतीर्थ सबसे श्रेष्ठ है, उसी प्रकार अयोध्यापुरी में गो प्रतार तीर्थ का महत्व सबसे अधिक है, जहां भगवान श्रीराम चन्द्र जी की आज्ञा से समस्त साकेत निवासियों को उनके दिव्य धाम की प्राप्ति हुई थी। भगवान श्रीराम देवताओं के साथ परमधाम को गए। अतः सबको तारने वाला वह तीर्थ ‘गोप्रतार’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोप्रतार तीर्थ में उत्तम मोक्ष प्राप्त होता है। गोप्रतार तीर्थ में निःसंदेह भगवान विष्णु स्थित हैं। उसमें जो स्नान करता है, वह निश्चय ही योगियों के लिए भी दुर्लभ परम धाम को प्राप्त होता है। मनुष्यों को वहां विशेषरूप से कार्तिक की पूर्णिमा में स्नान करना चाहिए। भगवान श्रीराम श्रीहरि की प्राप्ति के लिए बड़ी भक्ति के साथ नाना प्रकार के अन्न, स्वर्ण और भांति-भांति के वस्त्र दान करना चाहिए। इस प्रकार पुण्यात्मा मनुष्य गोप्रतार तीर्थ में यत्नपूर्वक स्नान करके आदरपूर्वक भगवान श्रीराम विष्णु की पूजा करने से समस्त पाप-ताप से रहित हो उन्हीं के सायुज्य को प्राप्त होता है। यह अयोध्यापुरी नामक उत्तम तीर्थ अत्यन्त गुप्त है।
यह सदा सभी प्राणियों के मोक्ष का साधक है। इसमें सिद्ध और देवता भी वैष्णव व्रत का आश्रय लेकर नाना प्रकार के वेष धारण किए विष्णु लोक की अभिलाषा से नित्य निवास करते हैं। इस उत्तम क्षेत्र में निवास करना भगवान विष्णु को सदैव रुचिकर है। जिन्होंने अपने समस्त कर्म भगवान श्रीराम विष्णु को समर्पित कर दिए हैं, वे रामभक्त या विष्णुभक्त यहां मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। यहां भगवान श्रीराम विष्णु का निवास है, इसलिए यह अयोध्या नामक महाक्षेत्र अत्यन्त उत्तम है। जो मोक्ष अत्यन्त दुर्लभ माना गया है, वही यहां सब सिद्धों और महर्षियों को प्राप्त होता है। भक्तों के लिए श्रीराम विष्णु की भक्ति प्राप्ति का उत्तम धाम हैं, जिसका चित्त्त विषयों में आसक्त है और जिसने धर्म का अनुराग त्याग दिया है, ऐसा मनुष्य भी यदि इस परम पावन धाम में मृत्यु को प्राप्त होता हो तो वह पुनः संसार-बंधन में नहीं पड़ता।
हजारों जन्मों तक योगाभ्यास करने वाला योगी भी जिस मोक्ष को नहीं पाता, उसी को यहां मृत्यु होने से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। यह अयोध्या ही उत्तम स्थान है, यही परम पद है। श्रीराम जन्मस्थान उत्तम तीर्थ माना जाता है। उसका दर्शन करके मनुष्य गर्भवास पर विजय पा लेता है। श्रीराम नवमी के दिन व्रत करने वाला मनुष्य स्नान-दान के प्रभाव से यहां जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट जाता है। सरयू का दर्शन करने से मनुष्य उत्तम पुण्य को प्राप्त कर लेता है। श्रीरामचन्द्र जी का ध्यान यहां मनुष्यों के संसार-बंधन के कारणभूत अज्ञान का निश्चय ही नाश करने वाला है। जहां कहीं भी रहकर जो मन से अयोध्या जी का स्मरण करता है, उसकी संसार बंधन से मुक्ति होती है। सरयू नदी सदा मोक्ष देने वाली है। यह जलरूप से साक्षात परब्रह्म है। श्रद्धा से इसमें स्नान करने से मनुष्य श्रीराम को प्राप्त करता है।
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समस्त प्राणियों के मोक्ष के स्वामी श्री रघुनाथ जी के इस दिव्य धाम अयोध्यापुरी में सिद्धपुरुष सदा विष्णु का व्रत धारण किए निवास करते हैं। समस्त देवता भी गुप्त रूप से वेष बदलकर भगवान श्रीराम के संकीर्तन में लगे रहकर इस धाम में निवास करते हैं। लोक कल्याण की भावना से नाना प्रकार के वेष वाले जितेन्द्रिय युक्तात्मा मनुष्य यहां नित्य उत्तम योग का अभ्यास करते हैं। यहां मनुष्य जिस प्रकार धर्म का फल पाता है, वैसा अन्यंत्र कहीं नहीं पाता। इसमें किया हुआ पूजन, व्रत और दान सब अक्षय होता है।
देवाधिदेव भगवान विष्णु अपने स्वरूप को चार शरीर में व्यक्त करके रघुवंश शिरोमणि श्रीराम होकर अपने तीनों भाईयों के साथ यहां नित्य विहार करते हैं। इसी धाम में कैलासवासी शिव भी वास करते हैं। ऋषि, देवता, असुर, जप-होमपरायण मनुष्य, सन्यासी और मुमुक्षु मनुष्य अयोध्यापुरी का सेवन करते हैं। काशी में योगयुक्त होकर शरीर त्याग करने वाले मनुष्यों को जो गति प्राप्त होती है, वही सरयू में स्नान करने मात्र से मिल जाती है। वे भगवान श्रीराम की भक्ति पाकर निश्चय ही परमानन्द को प्राप्त होते हैं। श्री अयोध्यापुरी सर्वोत्तम धाम है। यह भगवान विष्णु के चक्र पर प्रतिष्ठित है।
लोकेन्द्र चतुर्वेदी
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