सनातन धर्म में पुरूषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि में ‘पुष्कर’ तीर्थ की विशेष महिमा है। भारतवर्ष में राजस्थान राज्य में ‘पुष्कर’ नामक पावन तीर्थ विद्यमान है। शास्त्रों पुराणों में पुष्कर क्षेत्र की विशेष महिमा का वर्णन किया गया है। नारद पुराण के उत्तर भाग में पुष्कर क्षेत्र की महिमा का उल्लेख किया गया है। पुराणानुसार , जो मनुष्य को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है, वह पुष्कर तीर्थ है। इसमें अनेक तीर्थों की महिमा सम्मिलित है। जहां भगवान विष्णु के साथ इन्द्र आदि देवता, गणेश, रैवत और सूर्य विराजमान हैं, उस पुष्कर वन में जो बिना किसी साधन के भी निवास करता है, वह योग साधन का पुण्य पाता है। पृथ्वी पर इससे बढ़कर दूसरा कोई क्षेत्र नहीं है। अतः श्रेष्ठ मानवों को सर्वथा प्रयत्न करके इस उत्तम क्षेत्र का सेवन करना चाहिए। जो भी मनुष्य इस क्षेत्र में निवास करते हुए सर्वतोभावेन ब्रह्माजी में श्रद्धा भक्ति रखते और सभी जीवों पर दया करते हैं, वे ब्रह्माजी के लोक में जाते हैं। पुष्कर वन में, जहां प्राची सरस्वती बहती हैं, जाने से मनुष्य को मति, स्मृति, दया, प्रज्ञा, मेधा और बुद्धि प्राप्त होती है। जो वहां तट पर स्थित होकर प्राची सरस्वती के उस जल को पीते हैं, वे भी अश्वमेध यज्ञ का फल पाकर सुखस्वरूप ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। पुष्कर में तीन उज्जवल शिखर हैं, तीन निर्मल झरने हैं तथा ज्येष्ठ, मध्य और कनिष्ठ- ये तीन सरोवर हैं। वहां नन्दासरस्वती के नाम से सुप्रसिद्ध तीर्थ है, जो पुष्कर से एक योजन दूर पश्चिम दिशा में विद्यमान है। वहां विधिपूर्वक स्नान और उत्तम वेदवेत्ता ब्राह्मणों को दूध देने वाली गौ का दान करने से मनुष्य ब्रह्मलोक में जाता है।
इसके सिवा वहां कोटितीर्थ हैं, जहां करोड़ों ऋषियों का आगमन हुआ था। वहां स्नान और भक्त ब्राह्मणों का पूजन करके मनुष्य सब पातकों से मुक्त हो जाता है। उसके बाद अगसत्याश्रम में जाकर स्नान और कुम्भज ऋषि का पूजन करके मनुष्य भोगसामग्री से सम्पन्न और दीर्घायु होता है तथा शरीर का अंत होने पर वह स्वर्गलोक में जाता है। ज्येष्ठ पुष्कर में स्नान करके ब्राह्मण को गोदान देने से मनुष्य पृथ्वी लोक में सम्पूर्ण भोगों के पश्चात ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित होता है। मध्यम पुष्कर में स्नान करके ब्राह्मण को भूदान करने वाला मनुष्य श्रेष्ठ विमान पर बैठकर भगवान विष्णु के लोक में जाता है। कनिष्ठ पुष्कर में स्नान और ब्राह्मण को सुवर्ण दान करके मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओं को पाता है तथा अंत में भगवान रूद्र के लोक में प्रतिष्ठित होता है। जब कभी कार्तिक की पूर्णिमा को कृन्तिका नक्षत्र हो तो वह महातिथि समझी जाती है। उस समय पुष्कर में स्नान करना चाहिए। कल्याणमय पितामहतीर्थ में जो मनुष्य स्नान करते हैं, उन्हें महान अभ्युदयकारी लोक प्राप्त होते हैं।
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जो मनुष्य वहां स्नान करके विधिपूर्वक पिण्डदान देता है, वह अपने पितरों को स्वर्ग लोक में पहुंचा देता है। इस पावन तीर्थ में स्नान, दान से मनुष्य इहलोक और परलोक में भी मनोवांधित भोग पाता है। पुष्कर तीर्थ में सरोवर से दक्षिण भाग में एक पर्वत शिखर पर सावित्री देवी विराजमान हैं। जो उनकी पूजा करता है, वह वेद के तत्व का ज्ञाता होता है, उसकी बुद्धि निर्मल हो जाती है। उत्तम बुद्धि एवं ज्ञान का उदय होता है। इस संसार में उस मनुष्य का भाग्योदय होता है। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर पुष्कर तीर्थ में स्नान करके ब्राह्मणों को दान देता है, वह उत्तम गति पाता है। पितरो के निमित्त पिण्डदान से पितरो को उत्तम गति प्राप्त होती है एवं पितरो की प्रसन्नता से अभ्युदय और मनोवांछित फल प्राप्त होता है। पुष्कर में स्नान दुर्लभ है, पुष्कर में दान दुर्लभ है और पुष्कर में रहने का सुयोग भी दुर्लभ है। जो मनुष्य स्नान के समय भक्तिभाव से पुष्कर तीर्थ का चिंतन करता है, वह उसमें स्नान का फल पाता है।
ज्योतिर्विद लोकेन्द्र चतुर्वेदी