भारतीय संवत्सर का 11वां चन्द्रमास और दसवां सोरामास ‘माघ’ मास कहलाता है। इस महीने में मघा नक्षत्र मुक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम मघा पड़ा। धार्मिक दृष्टिकोण से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस मास में पवित्र नदी संगम में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोक में जाते है। पद्मपुराण के अनुसार, माघ मास के महात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में पवित्र नदी में स्नान मात्र से होती है। इसलिए स्वर्गलाभ सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।
माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की ‘मौनी अमावस्या’ के रूप में प्रसिद्धि है। इस पवित्र तिथि में मौन रहकर अथवा मुनियों के समान आचरण पूर्वक स्नान-दान करने का विशेष महत्व है। मौनी अमावस्या के दिन सोमवार का योग हो तो उसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन त्रिवेणी प्रयाग में अथवा गंगाघाट पर स्नान-दान की अपार महिमा है। महाभारत ग्रंथ के अनुसार, पर्व में माघ की अमावस्या की महिमा बताते हुए लिखा है कि माघ मास की अमावस्या को प्रयागराज में 3 करोड़ 10 हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है, जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है। मौनी अमावस्या को नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करके तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आँवला, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। इस दिन साधु, महात्मा तथा ब्राह्मणों के सेवन लिए अग्नि प्रज्वलित करना चाहिए तथा उन्हें कम्बल का दान करना चाहिए। इस दिन गुड़ में काला तिल मिलाकर लड्डू बनाना चाहिए तथा उसे लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मणों को दान करना चाहिए तथा दक्षिणा देना चाहिए। स्नान-दान अदि पुण्यकर्मों के अतिरिक्त इस दिन पितृ श्राद्धादि के निमित्त भी दान करना चाहिए। । इसके फलस्वरूप निरोगजा, लक्ष्मी वृद्धि, सुख सम्पत्ति एवं स्त्री, संतान सुख प्राप्त होता है।
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यूं तो माघ मास की प्रत्येक तिथि पुण्य पर्व है तथापि उनमें भी माघी पूर्णिमा को विशेष महत्व दिया जाता है। माघ मास की पूर्णिमा तीर्थ स्थलों में स्नान-दान आदि के लिए परम फलदायिनी बताई गई है। तीर्थराज प्रयाग में इस दिन स्नान, दान, गोदान एवं यज्ञ का विशेष महत्व है। इस दिन किया गया स्नान-दान कोटि गुणा पुष्प फल प्रदान करने वाला होता है एवं पाप का शमन करता है। शास्त्रानुसार माघी पूर्णिमा को प्रातः काल नित्यकर्म एवं स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। फिर पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। असमर्थों को भोजन, वस्त्र तथा धन प्रदान करना चाहिए। तिल, कम्बल, गुड़, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न और यथाशक्ति स्वर्ण, रजत आदि का दान करना चाहिए तथा पूरे दिन का व्रत रखकर ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा प्रदान करे और सत्संग एवं भगवत कथा कीर्तन में दिन-रात बिताकर दूसरे दिन पारण करना चाहिए। माघ मास की ऐसी विशेषता है कि इसमें जहां कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है। इस माघ मास में स्नान मात्र से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है एवं निरोगिता, लक्ष्मी, सम्पदा, तेज, प्रतिष्ठा, स्वर्गलाभ, सन्तान लाभ एवं प्रबल पापों का शमन होता है। इस मास में स्नान, दान, उपवास और भगवान माधव की पूजा अनंत फलदायी होती है। इस प्रकार माघ स्नान की अपूर्व महिमा है। इस मास की प्रत्येक तिथि पर्व है। कदाचित अशक्त अवस्था में पूरे मास का नियम न ले सकें, तो तीन दिन अथवा एक दिन अवश्य माघ स्नान व्रत का पालन करना चाहिए।
लोकेंद्र चतुर्वेदी ज्योतिर्विद
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