वाराणसी: एक माह तक चलने वाले काशी तमिल संगमम के चौथे दिन मंगलवार को तमिलनाडु के साथ काशी के कलाकारों और स्कूली छात्राओं ने सुर लय और ताल की त्रिवेणी बहाई। गायन, वादन और नृत्य से सजी सांस्कृतिक निशा में गायन, नृत्य के अनूठे संगम के मध्य कजरी गायन की जुगलबंदी से महामना की बगिया गूंजती रही। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एम्फीथियेटर मैदान में बने भव्य पंडाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत स्थानीय महमूरंगज स्थित निवेदिता शिक्षा सदन की छात्राओं ने गीत से किया।
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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आईएएस जयंती रवि सेक्रेटरी आरूविले फाउंडेशन पुडुचेरी रहीं। निशा में दूसरी प्रस्तुति 'ठोडा' टेबल लोक नृत्य के तौर पर हुई। तमिलनाडु से आए लोक कलाकार अल्वास के नेतृत्व में 15 महिला और पुरुष नर्तकों ने 20 मिनट तक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में तीसरी प्रस्तुति कोकालिकट्टाई की हुई। लोक कलाकारों ने शहनाई, ढोल और नृत्य करके पूरे मैदान में बैठे लोगों को झूमा दिया। चौथी प्रस्तुति पंबई लोक कृत्य की हुई। मंच पर 300 साल प्राचीन इस लोक विधा को बड़ी ही संजीदगी से दिखाया गया। इसका नेतृत्व तमिलनाडु स्थित कृष्णागिरी केजी मणिकंदन ने किया।
अंतिम प्रस्तुति के तौर पर सुचरिता गुप्ता की टीम ने कजरी गायन किया। संगमम में आए श्रोताओं ने कहा कि उत्तर और दक्षिण के संस्कृत कला का यह अटूट संगम काशी के धरती पर हो रहा है। जहां हमें दक्षिण भारत के लोक नृत्य गायन को देखने को मिल रहा है। तमिलनाडु और काशी के कलाकारों ने समां बाध दिया। सुंदर प्रस्तुति से सुर और ताल की अनूठी छाप छोड़ी। लोक कलाकारों के बीच जुगलबंदी ने दिल जीत लिया।
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