लखनऊः कृषि से संबंधित बिलों को पास होने से कई राजनीतिक पार्टियों के आका खफा हैं। वह किसानों से ज्यादा गुस्सा होने का नाटक कर रहे हैं। असल में कहानी ही कुछ और ही है। इनको 2022 का विधानसभा चुनाव नजर आ रहा है। प्रदर्शन में खड़े किसानों की संख्या को आंकते हुए इन्होंने फैसला कर लिया है कि वह किसानों के साथ ही रहेंगे।
केंद्र सरकार के कृषि विधेयकों के खिलाफ सबसे ज्यादा गुस्से का माहौल पंजाब में है। किसान सड़क पर उतर चुके हैं। पंजाब बंद और रेल रोको आंदोलन की घोषणा कर चुके हैं। कृषि सुधार के नफा-नुकसान पर कोई बात नही कर रहा है। वह केवल यही कह रहे है कि अब किसान गुलाम बन जाएगा। सियासी दल आंदोलन की आग में घी डालने पर उतर आए हैं। उनको यह नहीं पता कि गुलाम होना क्या है ? केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर हरसिमरत कौर को भी यही सूझी थी।
केंद्र सरकार में बड़े नेताओं ने अपनी दौड़-भाग के जरिए विधेयक पास करा लिया। अब सरकार किसानों को विश्वास में ले रही है। आखिर जब किसानों को इस बिल से नुकसान हो, वह अपनी आवाज तब भी उठा सकते हैं। हमारे संविधान के मूल ढांचे में सैकड़ों संशोधन किया जा चुका है। कभी तो किसान एक-दूसरे के विरोधी हुआ करते थे, लेकिन इस बार 30 संगठन एक हो चले हैं।
यह भी पढेंः-फिल्म सिटी बनने से कलाकारों के सपनों को लगेंगे पंख, खुलेंगे संभावनाओं के नए द्वारअनावश्यक प्रदर्शन की इजाजत नहीं
किसान संगठन अपने प्रदर्शनों में किसी राजनीतिक पार्टी के नेता को शामिल नहीं होने दे रहे हैं। किसान समझ चुका है कि उसे इस्तेमाल किया जा रहा है, सभी दल अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में हैं। इसलिए अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे। यूपी में प्रशासन सख्त है। कोरोना का डर भी है। यहां किसी तरह की अराजकता के लिए मुख्यमंत्री तुरंत ही अधिकारियों को इधर से उधर भेज देते हैं। अभी हाल में ही कानून व्यवस्था के मामले में उन्होंने रात में भी ट्रांसफर किए हैं। कांग्रेस तो सरकार को यह कहकर घेर ही रही है कि केवल मंत्रिमंडल से हटने से क्या होता है। राजग का हिस्सा तो वह है ही, जिसकी सरकार यह कानून ला रही है। वह उससे नाता तोड़े। राजग से हटने का फैसला लेना अकाली दल के लिए इतना आसान नहीं है।