एक दशक पहले 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक मजबूत और टिकाऊ सरकार का गठन हुआ तो यह कहा गया था कि अब पुराना दौर खत्म हो चुका है। जनता ने वैशाखी पर टिकी सरकारों से ऊबकर ही इस बार एक शक्तिशाली सरकार दी है। तब भाजपा के सहयोगी दल तो थे, पर ऐसे दलों के सहयोग के बिना भी उसके पास अपने दम पर सरकार चलाने की ताकत थी। यह सिलसिला अगले पांच साल बाद हुए यानी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला पर इस बार 2024 के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर देश को चैंकाने का काम किया है। भारत के राजनीतिक इतिहास में 90 का दशक बेहद उतार-चढ़ाव वाला रहा था। प्रधानमंत्री के रूप में पीवी नरसिम्हा राव का 05 साल का कार्यकाल मई 1996 में खत्म होने के बाद जब आम चुनाव कराए गए, तो किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला।
सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई थी। बदली राजनीतिक परिस्थितियों में बने संयुक्त मोर्चा ने एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन उनकी सरकार का जल्द ही पतन हो गया। मोर्चा ने नए प्रधानमंत्री के रूप में इंदर कुमार गुजराल का चयन किया और वो देश के 12वें प्रधानमंत्री बने। नब्बे के दशक में जब अस्थाई सरकारों का दौर चल रहा था तो कई मौके पर विश्वनाथ प्रताप सिंह, ज्योति बसु, चंद्रबाबू नायडू, एम करुणानिधि के साथ-साथ लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे कई नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आए लेकिन विश्वनाथ प्रताप सिंह के नहीं मानने की सूरत में एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री के रूप में चयन किया गया। तब कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे देवगौड़ा इस्तीफा देकर दिल्ली पहुंचे और प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस के बाहर से समर्थन से सरकार चला रही एचडी देवगौड़ा महज 10 महीने ही पद पर बने रह सके क्योंकि कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया।
इस बार पीएम पद की रेस में पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई, लालू यादव और मुलायम सिंह समेत कई नाम सामने आए लेकिन इनमें आपसी सहमति नहीं बन सकी। सहमति नहीं बनने की सूरत में इंदर कुमार गुजराल का नाम सामने आया और यह वो नाम था, जिस पर ज्यादातर लोग रजामंद थे। 1989 के लोकसभा चुनाव में जनता दल को 144 सीटें मिली थीं। उसने वामपंथियों और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से सरकार बनाने का फैसला किया था। तब विश्वनाथ सिंह प्रधानमंत्री बने लेकिन यह सरकार दो साल बाद ही गिर गई। इसके बाद चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया, पर यह सरकार केवल चार महीने ही टिक सकी। यह साफ है कि जितनी भी कांग्रेस विहीन साझा सरकारें चली वह ज्यादा चल नहीं सकी। भाजपा संगठन में काम करते करते 2001 में नरेंद्र मोदी पहली चार गुजरात के मुख्यमंत्री बने लेकिन, मुख्यमंत्री बनने के बाद से मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुजरात जैसे विकसित राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने कई पहल की। प्रशासन और राजकाज के नए मानदंड स्थापित किए।
2002 में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा की जबरदस्त जीत हुई फिर 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी लगातार जीतती रही। इसके बाद नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने देशभर खासकर उत्तरी भारत के राज्यों में जमकर प्रचार किया। देश को मजबूत नेतृत्व देने, लाखों नौकरियों के मौके पैदा करने, इकोनॉमी की ग्रोथ तेज करने सहित कई वादे किए। मतदाताओं ने उनके वादे पर भरोसा किया। 2014 को चुनाव में भाजपा अपने दम पर 283 सीटें हासिल करने में कामयाब रही। लंबे समय बाद देश को स्थिर सरकार मिली। एक ऐसी सरकार मिली जो गठबंधन के सहयोगी दलों पर निर्भर नहीं थी। 2019 के चुनाव में पीएम मोदी ने पुआंधार प्रचार किया। तब आजया को 303 सीटें मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी बार सरकार बनी। सरकार की निर्भरता सहयोगी दलों पर नहीं थी। लेकिन यह पहली बार होगा जब नरेन्द्र मोदी सहयोगी दलों के सहारे अपनी सरकार चलाने जा रहे हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के लिए 400 और भाजपा के लिए 370 सीटें हासिल करने का टारगेट तय करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी पार्टी को सरकार बनाने लायक सीट भी नहीं पा सके। भाजपा केंद्र में सरकार बनाने में सफल रहेगी लेकिन सरकार को सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा। पार्टी के लिए बड़े फैसले सेना मुमकिन नहीं होगा। उसे हर बडे़ फैसले के लिए सहयोगी दलों की राय लेनी होगी। सहयोगी दल भी अपने वोट बैंक की संतुष्टि पर ही प्रधानमंत्री मोदी के फैसलों पर अपनी मुहर लगाएंगे। पिछले 10 सालों में ये पहली बार हुआ है, जब भाजपा को अकेले पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। जिसकी वजह से अगर एनडीए सरकार बनाती है तो उनके लिए ये पारी काफी चुनौतीपूर्ण होगी। साल 2014 और 2019 में भाजपा ने अकेले दम पर 272 सीटों से अधिक सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया था।
मोदी सरकार को बीते 10 सालों में पहली बार सत्ताविरोधी रुझानों का सामना करना पड़ा है। एनडीए की सरकार बनती है तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोदी सरकार 3.0 पर देशभर में जातिगत जनगणना कराने को लेकर दबाव बना सकते है। भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू केंद्र सरकार से अहम मंत्रालय देने की मांग कर सकते हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार सालों से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल पैकेज की मांग कर सकते हैं। इन मांगों को लेकर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार 3.0 पर दबाव बना सकते हैं। पिछली दो सरकारों में सहयोगी दलों की परवाह किए बिना अपने हर फैसले को पूरा करने वाली भाजपा को अब दिक्कतों का सामना करना पडे़गा। अहम मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले सहयोगी दलों से विचार-विमर्श अधिक जरूरी हो जाएगा। भाजपा ने तीसरी बार सत्ता में आने पर एक देश, एक चुनाव और समान नागरिक कानून जैसे अहम मुद्दों को लागू करने की बात कही थी। ऐसे में इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर फैसला करने से पहले भाजपा की मजबूरी होगी कि वह सहयोगी दलों के साथ सहमति बनाए। यदि ऐसा नहीं होता है तो भाजपा को सहयोगी दलों के अलग होने का खतरा भी बना रहेगा।
श्रीधर अग्निहोत्री