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Electoral Bonds Scheme: क्या है चुनावी बॉन्ड, कैसे राजनीति दलों को मिलता था चंदा, जानें सब कुछ

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Electoral Bonds, Supreme Court: लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स (Electoral Bonds) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को अवैध बताते हुए उस पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने फंडिंग पर भी सरकार को बड़ा झटका दिया है।

Supreme Court 5 साल के चंदे का मांगा हिसाब 

कोर्ट ने कहा है कि चुनावी बांड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। मतदाताओं को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि बॉन्ड खरीदने वालों की सूची सार्वजनिक की जाए। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच साल के चंदे का हिसाब भी मांगा है। कोर्ट ने आगे कहा, चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इस रद्द कर दिया।

SBI को तीन हफ्ते के अंदर देनी होगी जानकारी

फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी का खुलासा न करना उद्देश्य के विपरीत है। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को 12 अप्रैल 2019 से अब तक की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। एसबीआई को ये जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी और आयोग यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दे। SBI को यह जानकारी तीन हफ्ते के अंदर देनी होगी। उधर शीर्ष अदालत के इस फैसले को उद्योग जगत के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है। ये भी पढ़ें..Electoral Bonds को असंवैधानिक बताकर सुप्रीम कोर्ट ने किया बैन, फंडिंग पर भी सरकार को बड़ा झटका

सर्वसम्मत से सुनाए गए दोनों फैसले

केंद्र सरकार की चुनावी बांड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवी चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई कर रहे सभी जजों ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया है।  सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं - एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले एकमत हैं।

जानें क्या है पूरा मामला

बता दें कि पूरा मामला इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) या कहें चुनावी चंदा से जुड़ा है, जो राजनीतिक दलों को गुप्त चंदा देने की इजाजत देती है। इस मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग (ECI) से योजना के तहत बेचे गए चुनावी बांड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को कहा था। इस मामले पर आज फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि चुनावी बांड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है। इस फैसले पर जजों की एक राय है। पांच सदस्यीय संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे।

किसने उठाया Electoral Bonds पर सवाल ?

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) सहित चार लोगों ने चुनावी बांड या चुनावी चंदा पर याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनावी बांड के जरिए गुप्त फंडिंग से पारदर्शिता प्रभावित होती है। यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन है। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)