133 सीटों की जरूरत होती है। इनके अलावा 70 सीटें महिलाएं और अल्पसंख्यकों के लिए रिजर्व हैं। पाकिस्तान की संसद में दो सदन हैं। निचले सदन को नेशनल असेंबली या कौमी असेंबली कहा जाता हैए तो उच्च सदन को सीनेट कहते हैं। नेशनल असेंबली के लिए सीधे और परोक्ष दोनों तरह से चुनाव होते हैं। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में 10 सीटें रिजर्व रहती हैंए जो वहां के अल्पसंख्यकों हिंदुओं और ईसाइयों के लिए हैं। नेशनल असेंबली में कुल 336 सीटें हैं। इनमें 266 सीटों पर चुनाव सीधे जनता वोटों के जरिए करती हैए जबकि नेशनल असेंबली की 70 सीटें रिजर्व होती हैं। 60 महिलाओं के लिए तो 10 गैर.मुस्लिमों के लिए है। रिजर्व सीटों का वितरण नेशनल असेंबली के लिए जीतकर आईं पार्टियों की क्षमता के हिसाब से उसी अनुपात में होती है। गौरतलब है किए पाकिस्तान में हिंदू और ईसाई अल्पसंख्यक हैं।
हिंदू करीब दो फीसदी हैंए तो ईसाई 01 फीसदी। इन रिजर्व सीटों पर हिंदू आौर इसाइयों के चुने जाने का प्रावधान हैं। पाकिस्तान में लोकतंत्र शुरुआत से ही कमजोर रहा है। इसकी मुख्य वजह सेना है। पाकिस्तान में पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1970 में हुआए जबकि भारत में 1952 में ही पहला चुनाव हो चुका था। सेना को जब भी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार अपने अनुकूल नहीं लगीए उसका तख्ता पलट दिया गया। पाकिस्तान के इतिहास में अब तक तीन बार तख्तापलट हुआ है। भारत में आजादी के बाद जिस समय लोकतंत्र का विस्तार हो रहा थाए उस समय 1958 आते.आते पाकिस्तान में पहला तख्तापलट हो चुका था। दूसरी बातए पाकिस्तान में चुनाव से जो सरकारें सत्तासीन हुईए वे स्थिर नहीं रही हैं। दरअसलए सेना को ऐसी स्थिति में तख्तापलट का मौका मिलता हैए जब देश में भारी अस्थिरता होए राजनीतिक विभाजन चरम पर हो और लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हों। भारत में ऐसी स्थिति कभी पैदा ही नहीं हुई। यहां तक कि इमरजेंसी के दौरान भी सेना राजनीति से अलग रही।
भारत और पाकिस्तान की सेनाएं
भारत में सेना की भूमिका पूरी तरह गैर.राजनीतिक है। ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी मिलने के बाद दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान और भारत के रूप में दो देश अस्तित्व में आए। दोनों का आधार जुदा था। जहां पाकिस्तान का वजूद ही धर्म थाए वहीं भारत का स्वरूप एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र का था। यह वह दौर थाए जब दोनों देशों में नई व्यवस्था आई। सेना सहित तमाम क्षेत्रों में पुनर्गठन हुआ। भारत में सेना को लोकतांत्रिक सरकार के नियंत्रण में ले आया गया। ब्रिटिश काल में भारत की जलए थल व वायु सेना के लिए एक कमांडर इन चीफ हुआ करते था। नई सरकार ने सबसे पहले सेना में कमांडर इन चीफ का पद खत्म किया।
उल्लेखनीय है किए अंग्रेजी शासन के दौर में कमांडर इन चीफ के पास एकमुश्त ताकत होती थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने उस समय कहा था कि फौज के आधुनिकीकरण के लिए थल सेनाए नौसेना और वायुसेना तीनों सेनाओं की अहमियत बराबर की होनी चाहिए। इस वजह से तीनों सेनाओं के अलग.अलग चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नियुक्त किए गए। इतना ही नहीं किसी भी तरह की तख्तापलट की संभावना ना होए इसलिए इन तीनों सेनाओं को रक्षामंत्री के अधीन रखा गयाए जो चुनी हुई सरकार के कैबिनेट के तहत काम करता है। भारत में यह सिस्टम आज भी कायम है बल्कि बाद की सरकारों ने इसे सुदृढ़ किया है। आजाद भारत के पहले कमांडर इन चीफ जनरल केएम करियप्पा थे। उनका यह कथन था कि सेना में राजनीति जहर की तरह है। इसे दूर रहना चाहिए।
पाकिस्तान की सेना में कमांडर इन चीफ के पद को कायम रखा गया। वह लगातार जारी रहा बल्कि यह सत्ता का केंद्र बन गया। 1953 में लाहौर में अहमदिया मुस्लिमों के विरोध में दंगे हुए थे। पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार इन दंगों को नियंत्रित कर पाने में असफल हुई और कानून एवं व्यवस्था को बहाल करने के लिए सेना को मोर्चा संभालना पड़ा। पाकिस्तान में पहली बार मार्शल लॉ लगा। उसके बाद से ऐसा कदम उठाना वहां की सामान्य बात हो गई। सेना को भी सत्ता का स्वाद मिला। जो काम सरकार को करना चाहिए वह भी सेना करने लगी। इस तरह आम अवाम का भरोसा भी उसने जीत लिया। वह पाकिस्तान में सत्ता का पर्याय बन गई।
चुनी गई सरकार का तख्ता पलट आम परिधटना हो गई। पाकिस्तान के 75 साल के इतिहास में कोई भी प्रधानमंत्री 05 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है। पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान थे। वे 04 साल 02 महीने तक इस पद पर रहे। वे इकलौते प्रधानमंत्री हैंए जो सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहे। 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी में उनकी हत्या कर दी गई थी। पाकिस्तान की सियासत में सेना का बड़ा किरदार रहा है। वहां करीब 35 साल तक उसने राज किया है। तीन बार सेना द्वारा चुनी हुई सरकार का तख्ता पलट किया गया। पहली बार फिरोज खान नून की सरकार का तख्तापलट हुआ। इनका कार्यकाल 16 दिसंबर 1957 से 07 अक्टूबर 1958 तक रहा। उस वक्त पाकिस्तान के आर्मी चीफ अयूब खान थे। उनके द्वारा नून सरकार का तख्तापलट कर दिया गया और देश पर मार्शल लॉ थोप दिया गया।
दूसरी बार 1971 की जंग के बाद 1973 में पाकिस्तान का नया संविधान बना। जुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री बनेए लेकिन 1977 में आर्मी ने उनका तख्तापलट कर दिया। जनरल जिया.उल.हक ने भुट्टो को जेल में डाल दिया। हत्या के एक केस में भुट्टो को फांसी की सजा सुनाई गई तथा उन्हें 04 अप्रैल 1979 को फांसी दे दी गई। तीसरी बार 12 अक्टूबर 1999 को पाकिस्तानी सेना के तब के चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ की सरकार का तख्तापलट कर दिया। नवाज शरीफ को जेल में डाल दिया गया। मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए। इस पर मुशर्रफ अगस्त 2008 तक रहे। बाद में मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में दोषी पाया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। पिछले साल मुशर्रफ का निधन हुआ।
राजनीति में इमरान खान
इमरान खान पाकिस्तान की राजनीति में एक सितारा हैं। वे क्रिकेट की दुनिया से राजनीति में आए। क्रिकेट में भी काफी लोकप्रियता हासिल की और राजनीति में भी अच्छा.खासा जन समर्थन मिला। 1996 में उन्होंने एक नई पार्टी पाकिस्तान तहरीक.ए.इंसाफ ;पीटीआईद्ध बनाई। जुलाई 2018 में देश के प्रधानमंत्री बने। अप्रैल 2022 में उनकी सरकार वहां की नेशनल असेम्बली का विश्वास मत नहीं प्राप्त कर पाई। वह हार गए। उन्हें अपदस्थ होना पड़ा। इमरान खान पर भ्रष्टाचार व घोटाले के आरोप लगे। 170 के करीब मुकदमें दायर किए गए। अदालत ने 14 साल की सजा सुनाई है। उन पर ऐसी धाराएं लगाई गई हैंए जिनके तहत उन्हें मृत्युदंड तक दिया जा सकता है।
क्या जुल्फकार अली भुट्टो की कहानी फिर तो नहीं दोहराई जाएगीघ् फिलहाल वे जेल में हैं। पार्टी और उन पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध है। उनकी पार्टी भी अपने सिंबल ष्बल्लाष् पर लड़ने से वंचित रही। इसलिए पीटीआई को अपने उम्मीदवारों को निर्दलीय के रूप में उतारना पड़ा। इस चुनाव में जिस तरह का उन्हें समर्थन मिलाए उससे यही लगता है कि इमरान खान के प्रति जन समर्थन काफी व्यापक है। पहली बार ऐसा हुआ है कि निर्दलीय उम्मीदवार इतनी बड़ी तादाद में जीते हैं। किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने के बावजूद इमरान की पीटीआई और नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग ;एनद्ध दोनों पार्टियों ने सरकार बनाने का दावा किया है। सबकी नजर उन निर्दलीय उम्मीदवारों पर टिकी हैए जो सबसे अधिक संख्या में चुनाव जीते हैं। इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने उमर अयूब को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। उमर फिलहाल पीटीआई के महासचिव पद पर हैं।
पीटीआई की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान ऐसे समय पर किया गया हैए जब पाकिस्तान में नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल.एन और बिलावल भुट्टों की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी मिलकर सरकार बनाने की कवायद में जुटी है। फौज का भी समर्थन नवाज शरीफ को मिला हैए लेकिन संख्या बल उनके साथ नहीं है। यदि ये पीटीआई के निर्दलीयों को अपने पक्ष में कर लें या उनमें से बहुमत जुटा लें तब कोई बात बने। वहींए पीटीआई अपने सहारे सरकार नहीं बना सकती है। यदि वह छोटे दलों को अपने साथ मिला ले तब भी बहुमत नहीं मिलेगा। जबकि इन दलों को मिलाना संभव भी नहीं है। कुल मिलाकर अनिश्चितता की स्थिति है। सब कुछ सेना पर निर्भर है। यही पाकिस्तान की क्रूर सच्चाई है। यहां का लोकतंत्र 75 साल बाद भी फौजी बूटों के तले कराह रहा है।
भारत और पाकिस्तान की राह
पाकिस्तान में फौजी तानाशाहों की सरकार हो या चुनी हुई सरकारें सभी का रवैया भारत विरोधी रहा है और है। इसी का नतीजा दोनों देशों के बीच तीन युद्ध हैं और हमेशा तनाव का बना रहना है। जहां भारत दुनिया की एक बड़ी शक्ति बना हैए वहीं पाकिस्तान अलग.थलग पड़ा है। आज भारत जी20 देशों का मेजबान बना। पाकिस्तान का कहीं कोई नाम नहीं है। देश कर्ज में डूबा है। महंगाई चरम पर है। हाल में पाकिस्तान की मशहूर लेखिका जेबा अल्वी आई थीं। एक इंटरव्यू में वहां के हालात के बारे में बताया कि वहां बड़ी परेशानी इस वक्त महंगाई है। यकीन नहीं होगाए हमारा चार महीने का बिल एक लाख रुपए आ रहा है।
एक यूनिट की कीमत 50 से 55 रुपए है। आम आदमी पिस गया है। 240 रुपए में एक ब्रेड मिल रहा है। इसी महंगाई की वजह से क्राइम बढ़ गया है। ऐसा क्यों हुआघ् इस पर उनका कहना था कि हमारे यहां कोई स्टेबिलटी नहीं है। दो साल.तीन साल एक सरकार रहती हैए फिर गिर जाती है। उसके बाद दूसरी आती है। 75 साल से पाकिस्तान में यह खेल जारी है। वहां के लोग जब भारत को देखते हैंए तो अपने मुकाबले पीएम मोदी की तारीफ करते हैं। इसलिए कि उन्होंने अपने मुल्क के लिए बहुत किया। तरक्की दिखाई दीए क्या दिल्ली.क्या लखनऊए हर जगह।
कौशल किशोर
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