फीचर्ड संपादकीय

निरंतर घातक होता वायु प्रदूषण का प्रभाव

Commuters travel amidst the heavy smog and traffic during morning hours as pollution persists in the city

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण की बेहद गंभीर स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए दो टूक शब्दों में कहा है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार तुरंत आपात कदम उठाए और जरूरी हो तो दो दिनों के लिए लॉकडाउन पर भी विचार किया जाए या अन्य उपाय किए जाएं। दरअसल दिन के समय कमजोर हवाएं और रात के समय एयर लॉक की स्थिति के कारण दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति विकराल बनी है। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने यह भी कहा है कि प्रदूषण की स्थिति इतनी खराब है कि हम घरों में भी मास्क पहनने को विवश हो गए हैं।

दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण की भयावह स्थिति पर नजर डालें तो 13 नवम्बर की सुबह दिल्ली में वायु गुणवत्ता का स्तर 499 था, जो शाम होते-होते 690 एक्यूआई तक पहुंच गया। हालांकि प्रदूषण के मानकों के अनुसार वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 0-50 अच्छा, 51-100 संतोषजनक, 101-200 मध्यम, 201-300 खराब, 301-400 बेहद खराब और 401-500 गंभीर श्रेणी में माना गया है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण की विकराल स्थिति के लिए पराली जलना एक बड़ा कारण है लेकिन इसके अलावा ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, खाना पकाने का धुआं, लकड़ी से जलने वाले चूल्हे, उद्योगों का धुआं इत्यादि भी वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। निर्माण कार्यों और ध्वस्तीकरण से निकलने वाले रेत-धूल, सीमेंट के कण तथा सड़कों पर उड़ने वाली धूल भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन दिल्ली में तो करीब 40 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में कहा है कि पराली के कारण 33 फीसदी प्रदूषण है। पराली जलने के आंकड़ों पर नजर डालें तो दिवाली के अगले दिन पराली जलने के हरियाणा में 500 और पंजाब में करीब 6000 मामले सामने आए थे। आईआईटीएम पुणे के मुताबिक 12 नवम्बर को भी पंजाब में पराली जलने के 3403, हरियाणा में 127 और उत्तर प्रदेश में 120 मामले सामने आए। चूंकि पराली के अलावा अन्य कई कारक भी हालात को बदतर बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं, इसीलिए अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि पराली जलाने के अलावा वाहन प्रदूषण, पटाखे चलाने और औद्योगिक इकाईयों के कारण भी दिल्ली में प्रदूषण है। दरअसल सभी सरकारों द्वारा प्रदूषण की बदतर स्थिति से निपटने के नाम पर खेतों में जलती पराली पर ही सारा ठीकरा फोड़ दिया जाता है।

वायु प्रदूषण अब लोगों में सैंकड़ों बीमारियों की जड़ बन रहा है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट को इन परिस्थितियों पर गंभीर चिंता जताते हुए तत्काल आपात कदम उठाने को कहा गया है। वायु प्रदूषण को लेकर आम धारणा है कि इससे श्वांस संबंधी परेशानियां ज्यादा होती हैं लेकिन कई शोधों में स्पष्ट हो चुका है कि प्रदूषण के सूक्ष्म कण मस्तिष्क की सोचने-समझने की क्षमता को भी प्रभावित करते हैं। यही नहीं, इससे पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या में चालीस फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है, जिससे नपुंसकता का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। इससे लंग्स फाइब्रोसिस और फेफड़ों का कैंसर हो सकता है। प्रदूषण के कण जब मानव शरीर के रक्त में पहुंचते हैं तो ये शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित करते हैं, जिसका असर कई बार वर्षों बाद दिखाई देता है। इसके अलावा इससे ब्लड कैंसर का खतरा भी बढ़ता है। यही कारण है कि अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अब यही मानना है कि यदि देश की राजधानी दिल्ली की हवा ऐसी ही बनी रही तो आने वाले समय में स्वस्थ इंसान भी फेफड़ों और रक्त कैंसर जैसी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के ही कारण अब देशभर में नॉन स्मोकर्स में भी फेफड़ों का कैंसर होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार मानव निर्मित वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष करीब पांच लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। वायु प्रदूषण लोगों की आयु घटने का भी बड़ा कारण बनकर उभर रहा है। एक्यूएलआई की हालिया रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि वायु प्रदूषण न सिर्फ तरह-तरह की बीमारियां पैदा कर रहा है बल्कि लोगों की आयु भी घटा रहा है। एक्यूएलआई रिपोर्ट के अनुसार यदि वर्ष 2019 जैसा वायु प्रदूषण संघनन जारी रहा तो दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता जैसे सर्वाधिक प्रदूषित महानगरों में रहने वाले लोग अपनी जिंदगी के नौ से ज्यादा वर्ष खो देंगे।

दक्षिण एशिया में उत्तर भारत सर्वाधिक प्रदूषित हिस्से के रूप में उभर रहा है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण पिछले 20 वर्षों में 42 फीसदी बढ़ा है और जीवन प्रत्याशा घटकर 8 वर्ष हो गई है। देशभर में पिछले दो दशकों में वायु में प्रदूषक कणों की मात्रा में करीब 69 फीसदी की वृद्धि हुई है और जीवन प्रत्याशा सूचकांक, जो 1998 में 2.2 वर्ष कम था, उसके मुकाबले अब एक्यूएलआई की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 5.6 वर्ष तक कमी आई है।

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भारत के अधिकांश शहरों की हवा में जहर घुल चुका है। शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां लोग धूल, धुएं, कचरे और शोर के चलते बीमार न हो रहे हों। वर्ष 1990 तक जहां 60 फीसदी बीमारियों की हिस्सेदारी संक्रामक रोग, मातृ तथा नवजात रोग या पोषण की कमी से होने वाले रोगों की होती थी, वहीं अब हृदय तथा सांस की गंभीर बीमारियों के अलावा भी बहुत सी बीमारियां वायु प्रदूषण के कारण ही पनपती हैं। वायु प्रदूषण की गंभीर होती समस्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में हर 10वां व्यक्ति अस्थमा का शिकार है, गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसका खतरा मंडरा रहा है और कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक अब वायु प्रदूषण की जद में होते हैं। नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस संबंधी बीमारियों का प्रतिशत करीब 69 फीसदी है और देशभर में 23 फीसदी से भी ज्यादा मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं।

योगेश कुमार गोयल