बिहार फीचर्ड बिजनेस

आर्थिक सर्वेक्षण: मंदी और कोरोना संकट के बावजूद बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद बढ़ा

Bihar Chief Minister Nitish Kumar. (File Photo: IANS)

पटनाः बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) सहित कई अन्य दल राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं। इस बीच, बिहार सरकार का दावा है कि कोरोना काल में भी बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2.5 प्रतिशत बढ़ा है। बिहार के सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य सरकार का कुल व्यय पिछले वर्ष की अपेक्षा में बढ़कर 1,65,696 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसमें से 26,203 करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय था और 1,39,493 करोड़ रुपये राजस्व व्यय रहा।

आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य सरकार का राजस्व व्यय 1,28,168 करोड़ रुपये और पूंजीगत व्यय 36,735 करोड़ रुपये था। वहीं, राज्य सरकार का राजस्व 2019-20 के 33,858 करोड़ रुपये से बढ़कर 36,543 करोड़ रुपये हो गया। बिहार के उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद कहते हैं कि कोरोना महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद राज्य में हर क्षेत्र में विकास हुआ। वर्तमान मूल्य पर राज्य की प्रति व्यक्ति आय 50,555 रुपये है, जबकि यह राष्ट्रीय स्तर पर 86 हजार 659 रुपये है।

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आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019-20 में सकल शस्य क्षेत्र (जीसीए) 72.97 लाख हेक्टेयर था और फसल सघनता 1.44 प्रतिशत थी। गत पांच वर्षो में कृषि एवं सहवर्ती क्षेत्र 2.1 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ा। उप क्षेत्रों के बीच पशुधन एवं मत्स्यपालन की वृद्धि दर क्रमश: 10 प्रतिशत और 7 प्रतिशत रही है। वर्ष 2020-21 में 6.83 लाख टन मछली का उत्पादन होने से राज्य मछली उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। बिहार में दूध का कुल उत्पादन 115.01 लाख टन है। बिहार में हाल के वर्षो में औद्योगिक विकास हुआ है। वर्ष 2017 से 2021 के बीच राज्य को कुल 54,761 करोड़ रुपये के निवेश और 1,918 प्रस्ताव प्राप्त हुए। तीन सर्वाधिक आकर्षक उद्योग इथेनॉल, खाद्य प्रसंस्करण और नवीकरणीय ऊर्जा हैं। दिसंबर 2021 तक इथेनॉल क्षेत्र में कुल 32,454 करोड़ रुपये निवेश वाली 159 इकाइयों को प्रथम स्तर की अनापत्ति दी गई। इथेनॉल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार ने इथेनॉल उत्पादन प्रोत्साहन नीति 2021 लागू की।

भवन निर्माण विभाग का बजट 2008-09 के 260 करोड़ रुपये से 20 गुने से भी अधिक बढ़कर 2020-21 में 5,321 करोड़ रुपये हो गया। 'स्वच्छ गांव समृद्ध गांव' एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका लक्ष्य सभी गांवों में सौर्य ऊर्जा की व्यवस्था को स्थापित करना है। इसका क्रियान्वयन 2,000 करोड़ रुपये के व्यय से किया जा रहा है। बिहार के वित्त मंत्री प्रसाद कहते हैं कि आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के आंकड़े भी बताते हैं कि वर्ष 2011 की जनगणना में बिहार में शहरीकरण का स्तर महज 11.3 प्रतिशत था। लेकिन राज्य सरकार द्वारा शहरी केंद्र को पुर्नस्थापित करने के निर्णय लेने के बाद राज्य में शहरीकरण का वर्तमान स्तर 15.3 प्रतिशत हो गया है।

राज्य सरकार का नगर विकास पर व्यय 2015-16 में 1,648 करोड़ रुपये था जो पांच वर्षों में 68 प्रतिशत बढ़कर 2,766 करोड़ रुपये हो गया। इसी प्रकार, 2015-16 में आवास पर व्यय 1,486 करोड़ रुपए था जो इसी अवधि में लगभग चार गुना होकर 5,658 करोड़ रुपये पहुंच गया। बिहार में ऋण जमा अनुपात 2019-20 के 36.1 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 41.2 प्रतिशत हो गया जबकि संपूर्ण भारत के स्तर पर यह 76.5 प्रतिशत से घटकर 71.7 प्रतिशत रह गया।

इधर, पांच वर्षो में शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी खर्च बढ़ा है। पिछले पांच वर्षो में शिक्षा और स्वास्थ्य वयवस्था के विकास पर खर्च करने वाली राशि दोगुनी हुई है। स्वास्थ्य पर 2015-16 में जहां 4,571 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, वहीं पिछले पांच वर्षो में 10,602 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसी तरह शिक्षा पर खर्च में भी वृद्धि हुई है। भले ही सरकारी आंकड़ें कोरोना काल में भी बिहार की अर्थव्यवस्था के विकास का दावा करते हों लेकिन विपक्ष इसे मानने को तैयार नहीं है। राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने आंकड़ों में गोलमाल बताते हुए इसका कटाक्ष किया। बिहार का विकास जमीन से नहीं हेलीकॉप्टर पर सवार होकर ऊपर जाकर देखना होगा। उन्होंने सरकारी आंकड़ों को झूठ का पुलिंदा बताया है। इस बीच, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्राचार्य और जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने भी कहा कि, कोरोना काल में अर्थव्यवस्था पूरी तरह प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा कि बिहार का विकास भी इससे अछूता नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि विकास की रफ्तार में भी कमी है। उन्होनें कहा कि जिस रफ्तार से विकास होना चाहिए वह नहीं हो रहा है।

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