नई दिल्लीः कोरोना काल में डॉक्टर्स (Doctor) ने यह साबित कर दिया कि आखिरकार उन्हें धरती का भगवान क्यों कहा जाता है। महामारी के दौर में जिस तरह डॉक्टरों (Doctor) ने मरीजों की सेवा की, उसने साबित कर दिया कि वह किसी देवदूत से कम नहीं हैं। कोरोना काल में जब कई मरीजों का अपनों तक ने साथ छोड़ दिया था, उस दौर में भी इन डॉक्टरों ने मरीजों का साथ नहीं छोड़ा। अपनी और अपने परिवार की जान की परवाह किए बिना ये मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए कोरोना वायरस से दो-दो हाथ करते रहे और आगे भी इस जंग से लड़ने को तैयार हैं। दूसरों की जान बचाते-बचाते हमारे सैकड़ों चिकित्सकों ने अपनी जान भी गंवा दी, जिनका देश सदैव ऋणी रहेगा।
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हमारे देश में जब कोरोना वायरस ने दस्तक दी, तो हर कोई सिहर उठा था। कारण यह था कि न हमारे डॉक्टरों को इसके बारे में कोई जानकारी थी और न ही इससे लड़ने के लिए आवश्यक मेडिकल उपकरण, फिर भी हमारे देश के चिकित्सकों ने देशवासियों को बचाने के लिए दिन-रात एक कर दिया। वायरस के अत्यधिक संक्रामक होने की वजह से चिकित्सक महीनों अपने घर नही जा सके और अपनी जान की परवाह किए बगैर अस्पतालों में ही डटे रहे। कोरोना की पहली लहर में लोगों को इलाज करते-करते कई डॉक्टरों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन इस साल आई दूसरी लहर चिकित्सकों के लिए काल बनकर आई।
कोरोना की दूसरी लहर ने जहां मरीजों की मृत्यु दर को कई गुना बढ़ा दिया, वहीं सैकड़ों डॉक्टरों ने भी अपनी जान गंवाई। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो कोरोना की दूसरी लहर में 420 डॉक्टरों की मौत हुई है, जिनमें दिल्ली में हुई मौतों की संख्या 100 के ऊपर है। बिहार इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर है, जहां अब तक कोरोना की वजह 96 डॉक्टरों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।
कोरोना की पहली लहर में 748 ने गंवाई थी जान
कोरोना महामारी की पहली लहर में कुल 748 डॉक्टरों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। आईएमए के आंकड़ों के अनुसार, पहली लहर में सबसे अधिक 91 डॉक्टरों (Doctor) की मौत तमिलनाडु में हुई थी। इसके बाद महाराष्ट्र से 81, पश्चिम बंगाल में 71 और आंध्र प्रदेश में 70 डॉक्टरों का कोरोना के कारण निधन हो गया था। गुजरात में 62 और मध्य प्रदेश में 22 डॉक्टरों ने महामारी के कारण अपनी जान गंवाई थी। यही नही वैक्सीनेशन के बाद भी संक्रमण की चपेट में में आने से कई डॉक्टरों की जान गई थी।
रिकॉर्ड वैक्सीनेशन में बड़ी भूमिका
कोरोना महामारी से पूरी दृढ़ता से लड़ाई लड़ने के अलावा हमारे चिकित्सकों (Doctor) ने वैक्सीन बनाने के बाद टीकाकरण में भी बड़ी भूमिका निभाई। चिकित्सकों के समर्पण, त्याग और दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम रहा कि भारत 9 महीने के अंदर ही 100 करोड़ टीकाकरण करने का रिकॉर्ड कायम कर सका। अब तक देश की 38 फीसदी से अधिक आबादी को टीके की दोनों डोज लग चुकी है और अभी भी हमारे चिकित्सक पूरी तन्मयता से वैक्सीनेशन में जुटे हुए हैं।
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