नई दिल्लीः कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार अहोई अष्टमी का पर्व सोमवार (17 अक्टूबर) को मनाया जाएगा। इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए निर्जल व्रत करती हैं और रात में तारों को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करती हैं। यह पर्व दीपावली का आगमन का सूचक माना जाता है। करवा चौथ पर महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत करती हैं तो अहोई अष्टमी पर संतान की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत करती हैं। यह पर्व माताओं द्वारा अपनी संतान की लम्बी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जिन माता-पिता को अपने सन्तान की ओर से स्वास्थ्य व आयु की दृष्टि से चिंता बनी रहती हो। इस पर्व पर सन्तान की माता द्वारा समुचित व्रत व पूजा करने का विशेष लाभ प्राप्त होता है। सन्तान स्वस्थ होकर दीर्घायु को प्राप्त करती हैं।
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 17 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी और 18 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर यह समाप्त होगी। अहोई अष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 17 अक्टूबर को शाम 06.14 मिनट से लेकर शाम 07.28 मिनट तक रहेगा।
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अहोई अष्टमी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक साहूकार रहा करता था। साहूकार की पत्नी चंद्रिका बहुत गुणवती थी। साहूकार की सात सन्ताने थीं। वह अपने परिवार के साथ सुख से जीवन-यापन कर रहा था। दीपावली से पूर्व साहूकार की स्त्री घर की लीपाई के लिए मिट्टी लेने खदान गयी और कुदाल से मिट्टी खोदने लगती है, परन्तु उसी जगह एक सेह की मांद थी और अचानक उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग जाती है जिससे सेह के बच्चे की मृत्यु हो जाती है। इस घटना से साहूकार की पत्नी को बहुत दुख होता है। मन में पश्चाताप का भाव लिए वह घर लौट जाती है। परन्तु कुछ दिनों बाद उसकी सभी सात संतानें एक-एक करके मरने लगती हैं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगते हैं। बच्चों की शोक सभा में साहूकार की पत्नी विलाप करती हुई उन्हें बताती है कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नहीं किया लेकिन एक बार अनजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी। यह सुनकर बुजुर्ग औरतें साहूकार की पत्नी को दिलासा देती हैं और उसे अष्टमी माता की पूजा करने को कहती हैं। साहूकार की पत्नी दीवार पर अहोई माता और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर माता की पूजा करती है और अहोई मां से अपने अपराध की क्षमा-याचना करती है। तब मां प्रसन्न हो उसकी होने वाली सन्तानों को दीर्घ आयु का वरदान देती हैं। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
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