लखनऊः किसानों को अभी आम की फसल (mango crop) के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनके पास काफी समय है। फिलहाल जिस मौसम का वह सामना कर रहे हैं, उसमें किसानों का फायदा ही फायदा होने वाला है। यदि अभी बारिश हो भी जाती है, तो यह बागों के लिए हानिकर नहीं होगी इसलिए आम के पेड़ों को उनके हाल में ही छोड़ देना चाहिए।
यह बात किसान वैज्ञानिक डाॅ. एके दुबे ने
इंडिया पब्लिक खबर से बात करते हुए कहीं। उन्होंने बताया कि किसान या बागवान ज्यादा मुनाफा और ज्यादा पैदावार के लालच में दवाओं का अंधाधुंध छिड़काव करते हैं, लेकिन इससे उत्पादन पर असर पड़ता है। बागों में हर मौसम में भुनगा और कीट रहते हैं। यह ठंडक बढ़ने पर जाते हैं, इसलिए जब ठंडक की विदाई होने लगे तभी किसानों को भुनगा मारने की दवा का छिड़काव करना चाहिए।
बौर लगने पर करें दवाओं का छिड़काव
आम के बागों (mango crop) में इन दिनों भुनगा की भरमार है। किसान इसको लेकर काफी परेशान हैं। यदि इसी मौसम में किसान भुनगा नष्ट करना चाहते हैं तो वह इमिडाक्लोप्रिड पानी के साथ स्टिकर का छिड़काव कर सकते हैं। इसके लिए किसान वैज्ञानिक केंद्र में कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिक ने आम के उत्पादन (mango crop) को लेकर कुछ सावधानियां बताई हैं। उनका कहना है कि फरवरी-मार्च के महीने में आम के बाग में खास देखभाल की जरूरत होती है, लेकिन किसान इन दिनों बागों में विशेष दवाओं का छिड़काव कर रहे हैं। दवाओं का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि पेड़ में बौर लगने लगते हैं। इसी दौरान कीट और रोगों का प्रकोप भी बढ़ जाता है।
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मौसम के अनुसार चलें किसान
वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी सितंबर और अक्टूबर में सब्जी जनित फसलों में कीट हावी हैं, इनमें यदि तनिक भी गलत या ज्यादा दवा का प्रयोग कर दिया गया तो फसल पूरी तरह से नष्ट हो सकती है। कुछ किसान यही दवा आम के पेड़ों पर भी डाल रहे हैं, जबकि आम के पेड़ों पर इन दवाओं का असर उत्पादन प्रभावित कर देता है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने भी किसानों को मौसम के साथ चलने की सलाह दी है। आम पर गुहिया, दहिया और भुनगा का प्रहार वसंती मौसम में शुरू होता है। संस्थान की ओर से बताया गया कि किसानों ने अभी कुछ दिन पहले ही अपने खेतों में गोबर की खाद डाली है। ऐसे में मच्छर जनित दवाओं का भी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
अधिक दवाओं से पड़ता है प्रतिकूल प्रभाव
डाॅ. दुबे कहते हैं कि कीटनाशक के छिड़काव की संख्या बढ़ाने या फिर मात्रा बढ़ाने के बाद भी किसानों को ही नुकसान उठाना पड़ता है। उनका कहना था कि कीटनाशक की मात्रा बढ़ने पर कीट में प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। कीटों पर हल्के पावर की दवा असर ही नहीं करती है। किसान ज्यादा से ज्यादा कीटनाशक का इस्तेामाल करते हैं और कीट भी उतने ही ज्यादा उग्र होने लगते हैं। इनके हमले बढ़ने लगते हैं। ऐसे में आम के बौर सूखकर गिरने लगती है। कभी-कभी तो दवा के प्रभाव में फूल भी खिलने बंद हो जाते हैं, इसलिए किसान आम के प्रति ज्यादा सावधानी बरतें।
- शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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