वाराणसीः शारदीय नवरात्र में काशीपुराधिपति की नगरी मातृशक्ति की आराधना में लीन है। पूरे जिले में घरों से लेकर देवी मंदिरों में सांचे दरबार का जयकारा गूंज रहा है। गुग्गल, धूप, अगरबत्ती, कपूर, लोबान के धुएं से घरों में भी माहौल देवी मय हो गया है। नवरात्र के छठवें दिन शनिवार को सिंधियाघाट स्थित मातारानी कात्यायनी दरबार में श्रद्धालुओं ने हाजिरी लगा परिवार में वंश वृद्धि, सुख-चैन देश में शांति की गुहार लगाई। तंग गलियों में स्थित मंदिर परिसर में अलसुबह से ही श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए पहुंचने लगे। दरबार में गूंजती घंटियों की रूनझुन आवाज और रह-रहकर गूंजता जयकारा ‘सांचे दरबार की जय’ से पूरा वातावरण देवीमय नजर आ रहा था। जगदम्बा के भव्य स्वरूप की अलौकिक आभा निरख श्रद्धालु नर नारी निहाल हो जा रहे थे। दर्शन पूजन का क्रम भोर से पूरे दिन चलता रहा।
मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी के नाम से भी पुकारते हैं
महिषासुर का वध करने वाली देवी मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी के नाम से भी पुकारते हैं। मान्यता है कि मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और विवाह में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां कात्यायनी का स्वभाव बेहद उदार है और वह भक्त की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। ऋषि कात्यायन माता के परम भक्त थे। इनकी तपस्या से खुश होकर ही देवी मां ने इनके घर पुत्री के रुप में जन्म लेने का का वरदान दिया। ऋषि कात्यायन की बेटी होने के कारण मां को कात्यायनी कहा जाता है।
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मां कात्यायनी का स्वरूप
मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। माता के एक हाथ में खड्ग तो दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। दो अन्य हाथों से माता वर मुद्रा और अभय मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। मां दुर्गा का यह स्वरूप अत्यंत दयालु और भक्तों की मन की सभी मुरादें पूरी करती है। नवरात्रि के छठवें दिन दुर्गाकुण्ड स्थित कूष्माण्डा देवी, चैसट्टीघाट स्थित चैसट्ठी देवी, मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित मां अन्नपूर्णा के दरबार में भक्तों के दर्शन पूजन को भीड़ पहुंचती रही।
सातवें दिन कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान
शारदीय नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में कालिका गली में माता रानी का मंदिर है। आदिशक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। माता कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र है। पुराणों के अनुसार माता ने यह स्वरूप को चंड-मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए लिया था। देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है। चंड-मुंड के संहार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा भी कहा जाता है। विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है। अंधेरे की तरह काला रंग, बाल खुले हुए गले में मुंडों की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में राक्षस का कटा सिर, हाथ में अस्त्र-शस्त्र। मान्यता है कि मां कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय, डर और बाधाओं का नाश होता है। माता का वाहन गर्दभ है।
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