नई दिल्लीः कभी सोने की लंका कही जाने वाले भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है। महंगाई का आलम ये है कि लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसना पड़ रहा है। हालत ये है कि पेट्रोल से भी महंगा दूध बिक रहा है। अस्पतालों में दवाएं खत्म होने से डॉक्टर्स ने मरीजों का ऑपरेशन रोक दिया। पेट्रोल पंप पर फ्यूल के लिए दो-दो किलोमीटर लंबी लाइनें लग रहीं। एक कप चाय की कीमत 100 रुपये हो गई है। मिर्च 700 रुपये किलो बिक रही हैए तो वहीं एक किलो आलू के लिए 200 रुपये तक चुकाने पड़ रहे। फ्यूल की कमी का असर बिजली उत्पादन पर भी पड़ा है। लगातार बेकाबू हो रही महंगाई के कारण अब लोगों का गुस्सा श्रीलंकाई सरकार व शासन पर फूट रहा है।
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लोगों के गुस्से का नतीजा ये रहा कि गुरुवार 31 मार्च को आक्रोशित जनता ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के आवास के बाहर जमकर प्रदर्शन और आगजनी कीए साथ ही राष्ट्रपति के इस्तीफे की भी मांग की। श्रीलंका की सत्ता के शिखर पर दशकों से राजपक्षे परिवार का राज है। इस राजपक्षे परिवार पर ही देश को कंगाल करने का आरोप लगते रहे हैं और कहीं न कहीं वास्तव श्रीलंका की बरबादी का जिम्मेदार ये राजपक्षे परिवार ही है। राजपक्षे परिवार के चार भाई महिंदा राजपक्षेए गोटाबाया राजपक्षेए चमल राजपक्षे और बासिल राजपक्षे श्रीलंका की सत्ता पर राज कर रहे हैं जिन पर आरोप लगते हैं कि वो निरंकुश शासक बन बैठे हैं और उन्होंने मिलकर देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है।
लंका की सत्ता पर दशकों से है राजपक्षे परिवार का अधिकार
राजपक्षे परिवार ने श्रीलंका की क्षेत्रीय राजनीति से अपनी शुरुआत की थी। इसके बाद साल 2005 में महिंदा राजपक्षे देश के राष्ट्रपति चुने गए। बस यहीं से राजपक्षे परिवार के लोग सत्ता के महत्पपूर्ण पदों पर काबिज हो गए। महिंदा राजपक्षे ने अपने छोटे भाई और तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को डिफेंस सेक्रेट्री नियुक्त किया। उन्होंने अपने एक और छोटे भाई बासिल राजपक्षे को राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया। साल 2010 में वो फिर से राष्ट्रपति चुने गए। सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे को भी सत्ता में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया और वो कई बार मंत्री रहे। इसे लेकर राजपक्षे परिवार पर परिवारवादए निरंकुशता और सरकारी संसाधनों के गलत इस्तेमाल के आरोप लगने लगे। एक वक्त कहा जाने लगा कि राजपक्षे परिवार देश की 70 फीसद बजट पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है।
इन्हीं आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच साल 2015 का राष्ट्रपति चुनाव महिंदा राजपक्षे हार गएए लेकिन साल 2019 में फिर से राजपक्षे परिवार के गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के सबसे बड़े पद पर काबिज हुआ। उनके सत्ता में आते ही भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री चुन लिए गए। गोटाबाया के भाई बासिल राजपक्षे फिलहाल श्रीलंका के वित्त मंत्री हैं और चमल राजपक्षे कृषि मंत्री हैं। चमल साल 1989 से ही श्रीलंका के सांसद हैं। इतना ही नहीं महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे श्रीलंका के युवा और खेल मंत्री हैं। राजपक्षे परिवार से लगभग 7 लोग श्रीलंका की सत्ता के शीर्ष पदों पर काबिज हैंए जिसे लेकर विपक्ष सहित लोगों में भी गुस्सा भरा है। गोटाबाया राजपक्षे पर भी निरंकुशता के आरोप लगते रहे हैं।
पेट्रोल से महंगा बिक रहा दूध
पिछले साल 30 अगस्त को श्रीलंका सरकार ने मुद्रा मूल्य में भारी गिरावट के बाद राष्ट्रीय वित्तीय आपातकाल की घोषणा की थी और उसके बाद खाद्य कीमतों में काफी तेज बढ़ोत्तरी हुई। जनवरी में महंगाई को आंकड़ों के लेकर पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया था कि नवंबर 2021 से दिसंबर 2021 के बीच महज एक महीने के भीतर ही श्रीलंका में खाद्य वस्तुओं की महंगाई 15 प्रतिशत बढ़ गई थी। अब आलम ये है कि एक किलो मिर्च की कीमत 710 रुपये हो गईए एक ही महीने में मिर्च की कीमत में 287 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं बैंगन की कीमत 51 फीसदी बढ़ीए तो प्याज के दाम 40 फीसदी तक बढ़ गए। एक किलो आलू के लिए 200 रुपये तक चुकाने पड़े। आलम ये है कि देश में पेट्रोल से महंगी कीमतों पर दूध मिल रहा है। एक लीटर पेट्रोल की कीमत जहां 254 रुपए हैए वहीं एक लीटर दूध 263 रुपये में बिक रहा है। लोगों को एक ब्रेड का पैकेट भी 0.75 डॉलर (150) रुपये में खरीदना पड़ रहा है। यहीं नहीं एक किलोग्राम चावल और चीनी की कीमत 290 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है। मौजूदा समय में एक चाय के लिए लोगों के 100 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं।
दिवालिया होने की कगार पर देश
श्रीलंका अपने सबसे बुरे आर्थिक दौर से गुजर रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ मार्च के महीने में ही श्रीलंकाई रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 45 फीसदी टूट चुका है। एक मार्च से अब तक श्रीलंका की मुद्रा डॉलर की तुलना में टूटकर 292.5 के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ चुकी है। देश के प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे की मानें तो इस साल देश को 10 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हो सकता है। वहीं दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुके श्रीलंका के हालात पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां बढ़ रही हैं और सरकारी ऋण काफी उच्च स्तर पर पहुंच गया है। आईएमएफ ने गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे देश की अर्थव्यवस्था में तत्काल सुधारों का आह्वान किया। श्रीलंका की सरकार के पार पेट्रोल और डीजल खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची है जिससे ये संकट और भी गहरा गया है।
विदेशी कर्ज में डूबा है लंका
एक ओर देश महंगाई से जूझ रहा हैए दूसरी ओर श्रीलंका कई देशों के कर्ज में भी डूबा हुआ है। श्रीलंका पर करीब 32 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है। इस तरह श्रीलंका की सरकार के सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ उसे विदेशी कर्ज का पेमेंट करना हैए तो दूसरी तरफ अपने लोगों को मुश्किल से उबारना है। सरकार के सामने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से आर्थिक मदद लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका की सरकार को विदेशी कर्ज को जुलाई तक रीस्ट्रक्चर करना होगा। इसकी वजह यह है कि जुलाई में एक अरब डॉलर का कर्ज लौटाने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। जनवरी में विदेशी मुद्रा भंडार 70 फीसदी से ज्यादा घटकर 236 अरब डॉलर रह गया थाए जिसमें लगातार गिरावट आती जा रही है। विदेशी मुद्रा की कमी के चलते ही देश में ज्यादातर जरूरी सामानों दवाए पेट्रोल.डीजल का विदेशों से आयात नहीं हो पा रहा है। बीते दिनों आई रिपोर्ट की मानें तो देश में कुकिंग गैस और बिजली की कमी के चलते करीब 1,000 बेकरी बंद हो चुकी हैं और जो बची हैं उनमें भी उत्पादन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है।
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