कांग्रेस (Congress) पार्टी न्याय यात्रा पर है। 14 फरवरी से मणिपुर से शुरू की गई 66 दिनों की यह यात्रा मुंबई में खत्म होनी है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने नेतृत्व में यह यात्रा बस से और पैदल तय की जानी है। 15 राज्यों की 100 लोकसभा संसदीय क्षेत्र और 337 विधानसभा क्षेत्रों से यह गुजरेगी। 2024 के आम चुनाव शुरू होने में कुछ ही महीने बचे हैं। संभव है कि अप्रैल-मई में चुनाव हों। राहुल गांधी की ये यात्रा ऐसे वक्त हो रही है, जब विपक्ष के सामने चुनौती है कि कैसे भाजपा को लगातार तीसरा आम चुनाव जीतने से रोका जाए। अब ऐसे में मणिपुर से मुंबई तक 6,700 किलोमीटर से ज्यादा की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू किए जाने को लेकर सवालों का दौर भी शुरू है। इससे पार्टी को ही नहीं, बल्कि ‘इंडिया’ गठबंधन को भी चुनावी फायदा कितना मिलेगा, यह बहस के केंद्र में आ चुका है।
इससे पहले राहुल गांधी ने सितंबर 2022 से लेकर जनवरी 2023 तक कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की थी। इसके बाद कांग्रेस नेताओं को लगा कि ऐसी यात्रा से राहुल गांधी की छवि बेहतर हुई। उनका राजनीतिक कद बढ़ा था इसलिए यात्रा का दूसरा चरण सामने आया है। कांग्रेस यात्रा की वजह लोगों के लिए आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय बता रही है। उसका कहना है कि देश में संविधान व लोकतंत्र खतरे में है। भाजपा के मुताबिक, राहुल गांधी लंबे समय से राजनीति में हैं, पर वे राजनीति को लेकर गंभीर नहीं हैं। पार्टी प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला की मानें तो राहुल गांधी को हमारे देश में गंभीरता से नहीं लिया जाता।
यह न्याय यात्रा राहुल गांधी की 15वीं रीलॉन्च यात्रा है। राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो कांग्रेस के लिए यह यात्रा संजीवनी की तलाश के लिए यात्रा है। राहुल गांधी की ये यात्रा जिन 15 राज्यों से गुजरेगी, उन राज्यों में लोकसभा की तकरीबन 350 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी महज 14 पर ही जीत हासिल कर पाई थी। भारत जोड़ो न्याय यात्रा वाले राज्यों में से पांच तो ऐसे हैं, जहां 2019 में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई थी। मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्य इस सूची में है। सियासी लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी समेत यात्रा रूट के सात राज्यों में कांग्रेस पिछली बार महज एक सीट पर सिमट गई थी। ऐसे में इस यात्रा के जरिए कांग्रेस अपना सियासी वजूद मजबूत करने की कोशिश करेगी।
‘भारत जोड़ो’ यात्रा से ‘न्याय यात्रा’ का सफर
पूर्व में दक्षिण से उत्तर तक, कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी। अब ये नई यात्रा ’न्याय यात्रा’ मणिपुर से लेकर मुंबई तक हो रही है। देश में इसी साल लोकसभा चुनाव होने हैं। इस चुनाव से पहले सभी पार्टियां अपने अपने स्तर से जनता को लुभाने की कोशिशों में हैं। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ने 22 जनवरी को अयोध्या में हुए रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के लिए काफी उत्साह दिखाया, वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी ने 14 जनवरी से एक न्याय यात्रा शुरू की। भारत जोड़ो न्याय यात्रा इम्फाल, कोहिमा, गुवाहाटी, पूर्णिया, बरेली से होकर उज्जैन, बनसुवरा होते हुए मुंबई पहुंचेगी।
जहां भारत जोड़ो यात्रा पूरी तरह से पैदल तय किया गया था, वहीं भारत जोड़ो न्याय यात्रा हाइब्रिड होगी। इसका मतलब कि इस दौरान राहुल गांधी कहीं-कहीं बस से यात्रा करेंगे तो कहीं-कहीं पैदल। राहुल गांधी को चाहने वाले मान रहे हैं कि पहली यात्रा से जनता के बीच उनकी छवि बेहतर हुई है। राजनीतिक कद भी बढ़ा है। पत्रकार और लेखिका नीरजा चैधरी की मानें तो किसी को भी ये अच्छा लगता है कि कोई राजनेता उनके पास पहुंचे। उनकी बात सुने लेकिन इससे ये नहीं कहा जा सकता कि इस यात्रा के बाद लोग चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में बाहर आएंगे।
आंकड़ों की मानें तो पूर्व की यात्राओं से राहुल गांधी का कद भले बढ़ा, वोट बैंक नहीं। साल 2023 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, तेलंगाना और त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव हुए। इनमें केवल कर्नाटक और तेलंगाना में ही कांग्रेस को जीत मिली, बाकी राज्यों में भाजपा सत्ता में आई। जहां से भारत जोड़ो यात्रा निकली (कर्नाटक, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, राजस्थान), उनमें से राजस्थान और मध्यप्रदेश में तो राहुल गांधी ने 10 से ज्यादा दिन बिताए थे। उसके बाद भी उनकी पार्टी को इन दोनों राज्यों में हार मिली। हालांकि, इन राज्यों में कांग्रेस की हार के कई और बड़े कारक भी थे। पार्टी में अंतरिम विवाद, एंटी इंकम्बेंसी आदि। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। 2019 में कांग्रेस ने हाफ सेंचुरी ज़रूर मारी और पार्टी ने 52 सीटों पर जीत हासिल की।
सियासी गलियारे में कहा जा रहा है कि बीते कुछ समय में कांग्रेस पार्टी के अंदर के हालात कुछ ठीक नहीं हैं। सिर्फ चुनाव ही नहीं, बल्कि हाल ही में महाराष्ट्र के पार्टी के बड़े नेता मिलिंद देवड़ा ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। वे शिवसेना में शामिल हो गए। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने एक नई यात्रा की शुरुआत कर दी है। हालांकि, ये यात्रा नार्थ ईस्ट से होते हुए हिंदी बेल्ट को छूते हुए महाराष्ट्र जाएगी। वैसे तो ये यात्रा सीधे तौर पर 100 लोकसभा सीटें कवर करेगी लेकिन जिन भी राज्यों से ये यात्रा गुजर रही है, उनकी लोकसभा सीट देखें तो ये 200 से भी ज्यादा है। इसमें उत्तर-पूर्व के राज्यों को देखें तो सात बहन (सिस्टर) और सिक्किम मिला कर 25 लोकसभा सीटें हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर में 2-2, असम में 14, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम में 1-1 सीटें हैं। हालांकि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इन राज्यों में केवल 04 सीटें ही जीत पाई थी। इसमें से 03 सीटें असम की और एक मेघालय की थी। इसकी तुलना में बीजेपी ने अकेले 14 सीटों पर जीत हासिल की। एनडीए गठबंधन को 18 सीटों पर जीत मिली थी। अब बात करते हैं न्याय यात्रा को लेकर।
राहुल गांधी ने इस यात्रा की शुरुआत से पहले ही कहा था कि ये न्याय की यात्रा है। पिछली बार भारत जोड़ो यात्रा को उन्होंने नफरत के बाजार में प्यार बांटने की यात्रा बताई थी। इसलिए ये न्याय की यात्रा शुरू भी मणिपुर से हो रही है, क्योंकि मई 2023 से मणिपुर में हिंसा हो रही है और उस पर सत्ताधारी पार्टी कुछ खास बोल नहीं रही। प्रधानमंत्री ने भी मणिपुर को लेकर अपनी चुप्पी तब तोड़ी, जब संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। मणिपुर की राजधानी इंफाल के निकट थौबल में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की मौजूदगी में एक बड़ी रैली के सामने बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा भी कि मणिपुर जिस दर्द से गुजरा है, हम उस दर्द को समझते हैं। हम वादा करते हैं कि उस शांति, प्यार, एकता को वापस लाएंगे, जिसके लिए ये राज्य हमेशा जाना जाता है। मणिपुर पिछले आठ महीने से ज़्यादा वक़्त से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा की चपेट में है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ अभी तक हिंसा में 200 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
सबके अपने-अपने दावे
राहुल गांधी की ये यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि भारतीय जनता पार्टी को कैसे लगातार तीसरे आम चुनाव को जीतने से रोका जाए। चुनाव से पहले हुए तमाम सर्वे इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि इस बार के चुनाव से पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं। इतना ही नहीं, पिछले साल हुए पांच विधानसभा चुनाव में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मिली जीत के बाद बीजेपी की अब 28 में से 12 राज्यों में सरकारें हैं। चार ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी गठबंधन में सत्ता में है। दूसरी तरफ कांग्रेस की तीन राज्यों में सिमट कर रह गई है। इसमें तेलंगाना में पिछले साल मिली ताज़ा जीत भी शामिल है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि प्रधानमंत्री मोदी के पीएम रहते हुए भारत कमजोर हुआ है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि एनडीए की सरकार में लोकतांत्रिक अधिकारों, सरकारी संस्थानों का नाश हुआ है। इतना ही नहीं अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्ग के खिलाफ नफरत और हिंसा बढ़ी है। कांग्रेस समर्थक तहसीन पूनावाला के अनुसार पूर्व की यात्रा से पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह आया।
पार्टी संगठन जिसकी आलोचक सुस्त और आलसी कह कर आलोचना करते थे, उसमें आमूलचूल परिवर्तन आया है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के राज में भारत कमजोर हुआ। लोकतांत्रिक अधिकारों, सरकारी संस्थानों का नाश हुआ है, समाज में अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्ग के खिलाफ नफरत और हिंसा बढ़ी है। आलोचकों का कहना है कि विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग हुआ है। संविधान खतरे में है। कांग्रेस की यात्रा ऐसे वक्त हो रही है, जब 28 विपक्षी दलों की इंडिया गठबंधन के नेताओं के बीच बातचीत जारी है। बातचीत सीटों के बंटवारे, गठजोड़ के चेहरे आदि मुद्दों पर हो रही है। चुनाव के इतने नजदीक हो रही इस यात्रा पर कांग्रेस का कहना है कि यह यात्रा चुनावी नहीं, बल्कि वैचारिक यात्रा है और इसका चुनावी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश इस मसले पर कह चुके हैं कि चुनावी प्रक्रिया चल रही है। चुनाव के लिए तैयारियां हो रही हैं।
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ऐसा नहीं है कि सारा संगठन भारत जोड़ो न्याय यात्रा में जुड़ा हुआ है। जो कुछ हमें करना है, हम कर रहे हैं, पर इसका असर क्या 2024 के चुनाव पर होगा, वे नहीं कह सकते। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) की सुप्रिया सुले की मानें तो कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे की उपस्थिति में इंडिया गठबंधन के बीच सीट शेयरिंग को लेकर कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर राहुल गांधी फोन पर उपलब्ध होंगे। इंडिया अलायंस बहुत अच्छी स्थिति में है। राहुल गांधी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। वो सबको प्यार, सेवा, करुणा से जोड़ना चाहते हैं और नेतृत्व इसे ही कहते हैं। कांग्रेस की सुप्रिया सुले राहुल गांधी को मुबारकबाद देते हुए कहती हैं कि क्या गलत है कि अगर गठबंधन का सदस्य ऐसा करना चाहता है ? जयराम रमेश कहते हैं कि दस सवाल हमेशा उठते हैं। करने वाले कम हैं। सवाल उठाने वाले ज्यादा। विश्लेषिका नीरजा चैधरी को लगता है कि कहीं न कहीं विपक्ष ने हथियार डाल दिए हैं। सब अपनी-अपनी पार्टी को बचाने में लगे हैं। ये नहीं कि हमें मात देनी है, इकट्ठा लड़ना है, ये वाली भावना नहीं है।
जनता दल युनाइटेड के केसी त्यागी के अनुसार, अगर बीजेपी तीसरी बार जीतती है तो विपक्ष का कोई भविष्य नहीं है। न भारतीय संविधान का है, न सेक्युलरिज्म का है, न सोशलिज्म का है, न लोकतंत्र का है, न भारतीय विपक्ष का है। वे चिंता जाहिर करते हुए कह चुके हैं कि दिल्ली से राहुल गांधी की अनुपस्थिति का इंडिया अलायंस के दलों के बीच सीट शेयरिंग और अन्य पहलुओं को लेकर बातचीत पर असर पड़ेगा। इतने बड़े नेता की इतने लंबे समय तक अनुपस्थिति ठीक नहीं लग रही। वो यहां रहते तो सीटों की तालमेल कराते, कैंपेन कमिटी बनाते, बूथ कमिटियों तक पहुंचते, जन सभाओं का आयोजन कराते, यह ज्यादा व्यवहारिक रहता। कांग्रेस तो अपने आप मलबूत हो जाएगी, जिस दिन हम बीजेपी को पराजित कर देंगे। केसी त्यागी के अनुसार अगर मार्च के आखिर में चुनाव हो गए तो क्या होगा ? मोदीजी तो सरप्राइज देने के माहिर हैं। एक दिन में आप 20-25 किलोमीटर चलेंगे। एक लोकसभा क्षेत्र कवर करेंगे।
इससे अच्छा हेलिकॉप्टर से कर लेते। 10 लोकसभा क्षेत्र करते। राहुल गांधी अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं। क्यों उनका समय बर्बाद कराया जा रहा। ये वक्त नहीं है राष्ट्रीय एकीकरण के लिए। आप इतने गंभीर हैं तो (यात्रा) जून जुलाई से कर लें। देश के पांच लाख कुछ हजार गांव हैं, सब में हो आओ आप। केसी त्यागी के मुताबिक, अगर ये इंडिया गठबंधन की पदयात्रा होती तो और बेहतर होता, ताकि यूपी में अखिलेश साथ चलें, इसमें जयंत चैधरी साथ चलें। वहां लालू जी का बेटा, नीतीश कुमार साथ चलें पदयात्रा में तो कैसा लगेगा इसका रंग। विश्लेषक मिलन वैष्णव के मुताबिक ये जरूरी है कि इंडिया गठबंधन एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर राजी हो। इंडिया गठबंधन के पास नरेंद्र मोदी के मुक़ाबले कोई चेहरा न होना उसकी स्थिति कमजोर बनाता है। इसके साथ ही वो सीटों पर अलायंस में सहमति न होने की ओर इशारा करते हैं। कांग्रेस की यात्रा शुरू होने के ठीक पहले पार्टी नेताओं ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को भाजपा और आरएसएस का राजनीतिक प्रोजेक्ट कहते हुए ठुकरा दिया है।
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हालांकि, पार्टी के भीतर आलोचनात्मक आवाजें आने के बाद पार्टी ने कहा कि कोई भी कार्यक्रम में भाग ले सकता है। अब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम और कुछ ही समय बाद तय लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस की न्याय यात्रा उसके लिए कितनी संजीवनी साबित होगी, यह तो समय ही बताएगा। भाजपा प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होने को लेकर कांग्रेस के फैसले की निंदा कर चुकी है। इसे तुष्टीकरण की राजनीति और “झूठा सेक्युलरिज्म“ बताया है। पोलिंग एजेंसी सीवोटर के यशवंत देशमुख के मुताबिक, वो आपकी एंटी हिंदू इमेज को अंडरलाइन करेगा फिर आप परेशान होंगे कि मुझे बीजेपी वालों ने एंटी हिंदू बोल दिया। दोनों के बीच में बड़ी फाइन लाइन है। प्रोमुस्लिम होना एंटीं हिंदू होना नहीं है।
अमित झा