फीचर्ड संपादकीय

रामलला से दूरी, वोट की मजबूरी

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अयोध्या स्थित श्रीरामजन्मभूमि पर रामलला के नूतन विग्रह की स्थापना का साक्षी बनने के लिए देश-विदेश के रामभक्तों में होड़ मची थी। सबका यही प्रयास था कि वह किसी प्रकार वहां तक पहुंच जाएं और जैसे ही अवसर मिले, प्रभु के दर्शन कर लें। लोग पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल, बस, ट्रेन या अपने निजी साधन कार, ट्रैक्टर आदि से अयोध्या की ओर चल दिए। कार्यक्रम को सहज, सुगम और निर्विघ्न सम्पन्न कराने की बाध्यता के बीच जब प्रशासन ने अयोध्या की सीमाएं सील कर दीं और अन्य जनपदों से आने वाले वाहनों के आवागमन पर रोक लगा दी तो जो लोग अयोध्या पंहुच गए थे, उन्होंने बिना किसी विरोध-प्रतिरोध के अयोध्या की सीमा पर ही अपने सीमित संसाधनों में ठंड भरी रात गुजारी। इसके अलावा साधन के अभाव में हजारों रामभक्त मुख्य मार्ग के बजाय रेल की पटरियों अथवा गांव-गिरांव से होकर आने वाली सड़कों से अयोध्या पंहुचे। जाहिर सी बात है कि तमाम कष्ट उठाकर अयोध्या पंहुचने वाले रामभक्त मोदी, योगी, विहिप और संघ के आह्वान पर नहीं, अपने अन्र्तमन की प्रेरणा से रामलला के दर्शन को गए थे। उनमें इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने होड़ थी लेकिन दूसरी ओर देश के कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने निमत्रंण दिए जाने के बाद भी अनर्गल और आधारहीन आरोप लगाकर इस ऐतिहासिक कार्यक्रम से किनारा कर लिया। इनमें एक ओर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस तो दूसरी ओर शिवसेना जैसी पार्टियां भी है, जिसके सैनिकों ने 06 दिसम्बर 1992 को बाबरी ढांचा ढहाए जाने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। नवनिर्मित मन्दिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव हिन्दू समाज के लिए गौरवशली क्षण थ, जिसका आयोजन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर गठित “श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’’ ट्रस्ट द्वारा किया गया था। ट्रस्ट की ओर देश के लगभग सभी क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों को इस कार्यक्रम में उपस्थित होने का निमत्रंण दिया गया था, जिसमें कई राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल थे लेकिन जाति, धर्म, सम्प्रदाय और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले अधिकांश राजनीतिक दलों से जुड़े प्रमुख नेताओं ने इस अवसर पर आने से सार्वजनिक रुप से मना कर दिया।

अस्वीकार के बाद कांग्रेस में उठे विरोध के सुर

प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के निमत्रंण को अस्वीकार करने वालों में सबसे पहला नाम कांग्रेस पार्टी का है। कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं को कार्यक्रम में शामिल होने का न्यौता दिया गया लेकिन पार्टी द्वारा कहा गया कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में कांग्रेस चेयरपर्सन सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोक सभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चैधरी भाग नही लेगें, क्योकि अर्धनिर्मित राम मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है। अपने नेताओं के सुर में सुर मिलाते हुए कांग्रेस नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या ने सफाई देते हुए कहा कि हम राम मंदिर के विरोध में नहीं है, हम अपने गांवों में बने राम मंदिरों में जाते हैं लेकिन भाजपा के लोग इसका राजनीतिकरण कर रहे हैं, जिसका हम विरोध कर रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह तो शंकराचार्य से भी दो कदम आगे निकले और कहा कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि जो मंदिर पूरा न बना हो, वहां मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का काम नहीं किया जा सकता, इसे अशुभ माना जाता है। उल्लेखनीय है कि ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने एक वीडियों में कहा था कि ‘‘अर्धनिर्मित मंदिर‘‘ में प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है। पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के निमत्रंण को अस्वीकार करने के निर्णय का पार्टी में काफी विरोध हुआ। गुजरात से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोडवाडिया ने सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर अपनी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि यह देशवासियों की आस्था और विश्वास का विषय है। कांग्रेस नेतृत्व को ऐसा राजनीतिक निर्णय लेने से दूर रहना चाहिए था। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई और कांग्रेस नेता लक्ष्मण सिंह ने भी पार्टी आलाकमान के फैसले को अनुचित करार दिया। दिग्विजय सिंह के बयान के बारे में पूछे जाने पर कहा कि दिग्विजय सिंह ‘ज्ञानी महापुरुष‘ हैं और मुझसे कहीं ज्यादा जानते हैं। मैं उनके बारे में कुछ नहीं बोल सकता। पार्टी के निर्णय से नाराज पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रमोद कृष्णम ने कहा कि राम मंदिर और भगवान राम सबके हैं, इसको भाजपा, संघ, विश्व हिंदू परिषद या बजरंग दल का मान लेना दुर्भाग्य की बात है। उन्हांेने कहा कि इस फैसले से मेरी तरह करोड़ों कार्यकर्ताओं का दिल टूटा है, जिनकी आस्था भगवान राम में है। उन्होंने नेतृत्व को याद दिलाया कि स्व. राजीव गांधी ने ही राम मंदिर का ताला खुलवाने और शिलान्यास कराने में अहम भूमिका अदा की थी, जिसका श्रेय पार्टी लेती है। ऐसी स्थिति में प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को स्वीकार न करना बहुत दुखद है। इतना ही नही पार्टी के निर्णय के विपरीत प्रमोद कृष्णम प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल हुए और स्पष्ट शब्दो में कहा कि यह सनातन के शासन और रामराज्य की पुनः स्थापना का दिन है। यह दिन सदियों के संघर्ष और हजारों लोगों के बलिदान के बाद आया है। कृष्णम ने तो यहां तक कहा कि यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं होते तो यह मन्दिर कभी न बन पाता। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने वालों में कृष्णम अकेले नहीं थे बल्कि हिमांचल प्रदेश के पीडब्लूडी मंत्री राजा विक्रमादित्य सिंह, विधायक सुधरी वर्मा के अतिरिक्त उप्र के पूर्व अध्यक्ष डॉ. निर्मल खत्री प्रमुख लोगों में थे। विक्रमादित्य सिंह हिमांचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र हैं। शीर्ष नेतृत्व की असहमति के बाद भी मकर संक्रांति के पर्व पर कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई अयोध्या में रामलला के द्वार पहुंची। कांग्रेस के कई नेताओं ने सरयू नदी में स्नान किया। उप्र कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय, पार्टी के राष्टीय सचिव अविनाश पांडे, सांसद दीपेंद्र हुड्डा, उप्र विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा, वरिष्ठ नेता अखिलेश प्रताप सिंह सहित कई नेताओं के साथ अयोध्या आकर सरयू नदी में डुबकी लगाई और रामलला तथा हनुमानगढी में जाकर दर्शन किया। मीडिया से बातचीत में अजय राय ने कहा कि कांग्रेस के नेता हमेशा से अयोध्या आते रहे हैं, इसमें कुछ नया नहीं है लेकिन शीर्ष नेतृत्व द्वारा निमंत्रण अस्वीकार किए जाने के मुद्दे पर मौन रहे। अयोध्या दौरे पर कांग्रेस नेता और प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत भी पहुंची। उन्होंने कहा कि हम रामलला के दर्शन के लिए आए हैं, इसे ‘राजनीति’ से जोड़ना गलत है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पार्टी की दूरी के अलग-अलग कयास लगाये जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस भी इंडी गठबंधन में शामिल दूसरी पार्टियों का साथ देना चाहती है। यह साझा मंच पर एकजुटता दिखाने की कोशिश है जबकि राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि यह उत्तर और दक्षिण के नेताओं का खुला द्वंद था। उत्तर भारत के अधिकांश नेता इस कार्यक्रम में शामिल होना चाहते थे लेकिन दक्षिण के नेता इसके विरोध में थे। शीर्ष नेतृत्व ने असहाय होकर फैसला पार्टी पर छोड़ दिया। दक्षिण के नेताओं का तर्क था कि आगामी चुनाव में कांग्रेस की अधिकांश सीटें दक्षिणी राज्यों से आने वाली हैं, कांग्रेस का वहां मजबूत जनाधार है जबकि उत्तर भारत से पार्टी का जनाधार खत्म हो रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि कार्यक्रम से पार्टी की दूरी दिखावा है। कांग्रे हिन्दू मतों को साधने का लगातार प्रयास कर रही है। कभी राहुल गांधी जनेऊ दिखाते हैं, तो कभी मन्दिर-मन्दिर परिक्रमा करते हैं, प्रियंका वाड्रा नवरात्रि व्रत करती हैं तो कमलनाथ रामकथा करवाते है लेकिन सच यह है कि उत्तर भारत के हिन्दू मतदाता उससे दूर होते जा रहे हैं, इसलिए अब पार्टी उन मुस्लिम मतों को भी साधने में लगी है, जो कांग्रेस का साथ देते आ रहे है। रामलला से दूरी बनाने वाली पार्टी के नेता राहुल गांधी प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन अपनी न्याय यात्रा के बीच असम के वैष्णव संत श्रीमंत देव की स्थली बटाद्रवा थान मंदिर जाना चाह रहे थे लेकिन रास्ते में ही पुलिस प्रशासन ने उन्हें रोक दिया तो दूसरी ओर सांसद दीपेंद्र हुड्डा भगवान श्रीराम की भक्ति के रंग में रंगे हुए नजर आए। उन्होंने हरियाणा में झज्जर के पटौदी में भगवान श्रीराम के मंदिर का उद्घाटन और प्राण प्रतिष्ठा की।

शिवसेना सहित कई दलों ने मारी दी पलटी

शिवसेना राम मंदिर आंदोलन का प्रमख अंग रही है, बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराने में उसके सैनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन शिवसेना (यूवीटी) और भाजपा के रास्ते अलग होने के बाद इसका असर राम मंदिर से जुड़े कार्यक्रम पर भी दिखाई पड़ा। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कार्यक्रम से किनारा करते हुए कहा कि राम मंदिर बने ये मेरे पिता का भी सपना था और यह हम सभी के लिए खुशी की बात है कि अब मंदिर बन रहा है, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा को लेकर शंकराचार्यों से चर्चा की जानी चाहिए थी। राम सभी के हैं, मंदिर का काम पूरा होने के बाद हम जरूर वहां जाएंगे। दूसरी ओर अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के दिन शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे नासिक पहुंचे, जहां उन्होंने प्रभु रामचंद्र की कर्मभूमि माने जाने वाले नासिक के रामकुंड पंचवटी क्षेत्र में आयोजित धार्मिक आयोजन में भागीदारी की। अयोध्या न जाने का फैसला लेने वाले शीर्ष नेताओं में शरद पवार का नाम भी शामिल है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार को भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया था, लेकिन उन्होंने ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को पत्र लिखकर कहा कि वह बाद में समय निकालकर राम मंदिर में दर्शन करने जाएंगे। उन्होंने कहा है कि 22 जनवरी के समारोह में काफी भीड़ होगी। ऐसे में वह मंदिर निर्माण पूरा होने के बाद रामलला के दर्शन करेंगे। पवार के इस बयान को ‘अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा‘ से भी जोड़कर देखा जा रहा है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले राम मंदिर का विरोध किया। कार्यक्रम का न्यौता न मिलने को मुद्दा बनाया। उन्होंने कहा कि जब राम बुलाते हैं तो हर कोई उनके दरबार में पंहुच जाता है, परंतु जब निमत्रंण दिया गया तो उन्होंने जाने से इंकार कर दिया। विवाद बढ़ा, तो फिर पल्टी मार गए और प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन भगवान श्रीराम से जुड़ा एक वीडीयो पोस्ट करके अपनी बात रखी। अखिलेश यादव ने कहा कि वह प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद सपरिवार अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए जाएंगे। आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से तो दूरी बनाई, लेकिन उन्होंने कहा कि मैं अपने माता-पिता, धर्मपत्नी और बच्चों के साथ रामलला के दर्शन करने जाऊंगा। अयोध्या के रामलला से किनारा करने वाले अरविंद केजरीवाल ने प्राण प्रतिष्ठा के दिन दिल्ली के अनेक स्थानों पर सुन्दर कांड का पाठ कराया, आरती कराई और फल प्रसाद का वितरण कराया। इतना ही नहीं 21 और 22 जनवरी को रामलीला का मंचन हुआ, जिसमें केजरीवाल खुद मौजूद रहे। मुख्यमंत्री के निर्देश पर अनेक स्थानों पर शोभा यात्रा और भंडारे का आयोजन किया गया। पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी रामलला के प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं हुईं लेकिन काली मन्दिर और मजार पर जाकर फूल माला चढ़ाया तथा सभी धर्मों के साथ सद्भावना रैली निकाली। उन्होंने टीएमसी कार्यकर्ताओं से अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह की सद्भावना रैली निकालने की अपील भी की थी। यह भी पढ़ेंः-सीएम योगी ने कहा- 26 लाख करोड़ के पार पहुंचा बैंकिंग व्यवसाय, बैंकों को सराहा तमिलनाडु में सत्तारुढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं हुए लेकिन प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर स्टालिन सरकार और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बीच टकराव हुआ। सीतारमण ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने प्राण प्रतिष्ठा के दिन मंदिरों में भगवान राम की पूजा पर रोक लगा दी है। हालांकि, स्टालिन सरकार ने इस दावे को खारिज कर दिया। वित्त मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि पुलिस निजी तौर पर भी मंदिरों को कार्यक्रम आयोजित करने से रोक रही है। वे आयोजकों को धमकी दे रहे हैं कि वे पंडाल तोड़ देंगे। इस हिंदू विरोधी, घृणित कार्रवाई की कड़ी निंदा करती हूं। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को भी राम मंदिर के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था। यद्यपि उन्होंने कार्यक्रम में शामिल न होने का कोई कारण नहीं बताया। इन सबके अतिरिक्त वामपंथी दलों सहित तमाम लोगों ने भी अयोध्या से दूरी बनाई। प्रयास था कि देश में विपक्षी एकता का संदेश जाएगा और भाजपा को आने वाले समय में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा लेकिन अयोध्या में रामभक्तों का जो सैलाब उमड़ा, उसने सारे विपक्षियों को उसी दिन उसी समय भगवान की शरण में आने को मजबूर कर दिया। कार्यक्रम से दूरी बनाने वाले अधिकांश राजनेता अब हतोत्साहित, निरुत्तर होकर मुंह छिपा रहे है और जिस विपक्षी एकता का ताना-बाना बुना गया था, अब वह भी दरक रहा है। हरि मंगल