रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक बार फिर आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड (sarna dharam code) की मांग उठाई है। उन्होंने झारखंड के दौरे पर आए राष्ट्रपति से इस मामले में अपनी ओर से पहल करने का आग्रह किया। सोरेन ने इसे आदिवासियों के जीवन-मरण से जुड़ी मांग बताया।
गुरुवार को राष्ट्रपति झारखंड के खूंटी में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं के साथ संवाद कार्यक्रम में हिस्सा ले रही थीं।। इसमें
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद थे। इस दौरान उन्होंने अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए कहा कि झारखंड विधानसभा ने सरना धर्म संहिता (sarna dharam code) पारित कर केंद्र को भेज दी है। इसे संसद द्वारा पारित किया जाना चाहिए। झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों की हो, मुंडारी और कुडुख भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव भी केंद्र को भेजा गया है। इसे भी मंजूर किया जाना चाहिए। आदिवासियों के अस्तित्व को बचाने के लिए इन मांगों की स्वीकृति जरूरी है।
जनगणना के काॅलम में स्थान की मांग -
दरअसल, आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड (sarna dharam code) की मांग पिछले कई सालों से उठ रही है। सरना की धर्म संहिता की मांग का अर्थ है कि भारत में होने वाली जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो फॉर्म भरा जाता है, उसमें अन्य सभी धर्मों की तरह आदिवासियों के धर्म का उल्लेख करने के लिए एक अलग कॉलम बनाया जाना चाहिए। जिस तरह हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोग जनगणना फॉर्म में अपने धर्म का जिक्र करते हैं, उसी तरह आदिवासी भी अपने सरना धर्म का जिक्र कर सकते हैं।
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2020 में पारित हुआ था प्रस्ताव -
झारखंड विधानसभा ने 11 नवंबर 2020 को ही विशेष सत्र में आदिवासियों के सरना धर्म कोड (sarna dharam code) को लागू करने की मांग को लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया था, लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। खास बात यह है कि जनगणना में सरना आदिवासी धर्म के लिए एक अलग कोड दर्ज करने का यह प्रस्ताव झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद की संयुक्त भागीदारी वाली सरकार द्वारा लाया गया था, जिसका राज्य के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी समर्थन किया।
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