इस साल भी पश्चिम बंगाल में रामनवमी का आयोजन चर्चा में रहा। मुर्शिदाबाद में रामनवमी पर बवाल मचा। शोभायात्रा के दौरान इस पर बम, पत्थर फेंके गए और दो दर्जन से अधिक रामभक्त घायल हो गए। पिछले साल 2023 में भी बंगाल में रामनवमी पर बड़े पैमाने पर हिंसा की घटनाएं घटी थीं। उत्तर दिनाजपुर के दालखोला, हावड़ा के शिवपुर तथा हुगली के रिसड़ा व श्रीरामपुर में रामनवमी की शोभायात्राओं पर हमला हुआ था। इन घटनाओं में अनेक लोग जख्मी हुए थे। एनआईए इन घटनाओं की जांच कर रही है। हावड़ा में वर्ष 2022 में भी रामनवमी के दिन शाम को हिंसा की घटना हुई थी। खैर, रामनवमी के दिन मुर्शिदाबाद में मचे बवाल के बीच राज्य की ममता बनर्जी की सरकार और मुख्य विपक्षी दल भाजपा के बीच सियासत जारी है। एक-दूसरे पर सवाल किए जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सियासी तपिश के बीच ऐसा होना और भी स्वाभाविक है, पर सबों के जेहन में यह चिंता जरूर फिर आई है कि आखिर रामनवमी जैसे देशव्यापी पावन त्यौहारों के बीच बंगाल में बवाल क्यों हो रहा है ? रामनवमी पर मुर्शिदाबाद हिंसा मामले में निर्वाचन आयोग ने बड़ी कार्रवाई की।
बीजेपी पर क्यों उठ रहे सवाल
दो पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया। शक्तिपुर और बेलदाणा के ऑफिसर इंचार्ज हिंसा और दंगों को रोकने में विफल साबित हुए। ऐसे में उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया। इधर, इस घटना के लिए ममता बनर्जी ने हिंसा कराए जाने का आरोप भाजपा पर लगाया। मुर्शिदाबाद के शक्तिपुर में 17 अप्रैल को भड़की हिंसा के बाद चुनाव आयोग की पहल पर वहां की कानून व्यवस्था पुलिस हेडक्वार्टर के हाथ में चली गयी। आयोग ने सस्पेंड किए गए अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट भी तैयार किए जाने की बात कही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस घटना के बाद कहा कि भाजपा ने ही रामनवमी के मौके पर हिंसा भड़काई थी। इसी योजना के तहत मुर्शिदाबाद के डीआईजी मुकेश कुमार को उस दिन शिफ्ट कर दिया गया था। यह हिंसा पहले से ही निर्धारित थी। भाजपा विधायक ने एक दिन पहले हंगामा भी किया था। इसके अलावा वह रामनवमी के मौके पर वे हथियार लेकर क्यों गए थे ? रामनवमी से पहले डीआईजी को क्यों हटा दिया गया ? क्या भाजपा की मदद से यह सब किया गया ।
भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि शांतिपूर्ण ढंग से चल रहे रामनवमी के जुलूस पर कुछ उपद्रवियों ने हमला कर दिया। ममता की पुलिस मामले को नियंत्रित करने की बजाए उपद्रवियों का साथ दे रही थी। श्रद्धालुओं पर आंसू गैस के गोले छोड़ रही थी। इसके बाद जुलूस को तितर-बितर कर दिया गया। रामनवमी की शोभायात्रा में हथियार लेकर चलने पर भाजपा प्रत्याशी देबाशीष समेत 12 लोगों के विरुद्ध भी मामला दर्ज किया गया। इस पर देबाशीष का कहना है कि उनके हाथों में असली हथियार नहीं थे। वे प्रतीकात्मक हथियार लेकर शोभायात्रा में शामिल हुए थे। उन्हें कानून की भली-भांति समझ है। ऐसे में उन्हें कानून भंग करने के आरोप में फंसाया नहीं जा सकता। भाजपा के जिला संगठन के अध्यक्ष ध्रुव साहा के विरुद्ध भी मामला दर्ज किया गया। उन्होंने कहा कि हिंदू देवी-देवताओं के हाथों में अस्त्र रहते हैं, इसलिए वे हाथों में अस्त्र लेकर रामनवमी के जुलूस में शामिल हुए थे।
अल्पसंख्यक बहुल मुर्शिदाबाद जिले के हरिहरपाड़ा में एक रैली को संबोधित करते ममता ने कहा कि 2024 का लोकसभा चुनाव देश की आजादी की दूसरी लड़ाई से कम नहीं है। यह इसलिए क्योंकि केंद्र की सत्ता में लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए भाजपा के बने रहने से संविधान और लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। जंगीपुर में एक और चुनावी रैली में कहा कि निर्वाचन आयोग को भाजपा के आयोग के रुप में काम नहीं करना चाहिए। उन्हें केंद्रीय बल पसंद हैं लेकिन भाजपा के सदस्य के रुप में इनका इस्तेमाल किए जाने के वे खिलाफ हैं। निर्वाचन आयोग से सवाल करते कहा कि कूचबिहार में इस तरह से केंद्रीय बलों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा। आप इस तरह की स्थिति में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद कैसे करेंगे। यह शर्म की बात है कि निर्वाचन आयोग भाजपा का आयोग बन गया है। बनर्जी ने कहा कि भाजपा अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने को केवल खून-खराबा और हिंसा में यकीन रखती है। राज्य में हिंसा करा रही है। भाजपा के नेता क्यों अपने हथियारों के साथ शोभायात्रा में शामिल होते हैं। अदालत के आदेशों का उल्लंघन क्यों करते हैं। उन्हें किसने हथियारों के साथ रैली करने को कहा है। किसने उन्हें अनुमति दी।
रामनवमी पर बार-बार हिंसा के पीछे गहरी साजिश
पश्चिम बंगाल में रामनवमी जैसे पुनीत अवसर पर लगातार हिंसा की घटनाएं सामने आती रही हैं। इस पर सियासी तौर पर आरोप-प्रत्यारोप भी होते रहे हैं। हावड़ा के रहने वाले राज्य के मंत्री अरूप राय की मानें तो बचपन से ही उन्होंने रामनवमी का जुलूस देखा है। शहर का रामराजातला इलाका तो राम की पूजा के लिए ही मशहूर है लेकिन लाठी, तलवार और पिस्तौल के साथ रामनवमी का जुलूस निकलते पहले कभी नहीं देखा। अब हाल के वर्षों से यह सब दिख रहा है। ऐसा वही लोग करना चाहते थे, जिनको हिंदू और मुसलमान के विभाजन से फ़ायदा होगा। इससे साफ है कि तृणमूल कांग्रेस सीधे तौर पर इस सांप्रदायिक हिंसा के लिए हिंदुत्ववादी संगठनों को जिम्मेदार ठहरा रही है। दूसरी ओर, भाजपा इसके लिए मुख्यमंत्री को दोषी ठहरा रही है। पार्टी (भाजपा) के प्रदेश सचिव उमेश राय के मुताबिक, सौ फीसद मुस्लिम वोटों का तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ था, वह अब लौट रहा है।
इसके दोबारा ध्रुवीकरण के लिए उन्होंने सुनियोजित तरीके से यह सब कराया है। राजनीति से किसी न किसी को तो फायदा होगा ही, लेकिन ममता अपनी बयानबाजी के जरिए बंगाल को आग में झोंक रही हैं। पुलिस इस बार रामनवमी के मौके पर राज्य में होने वाली सांप्रदायिक हिंसा की तमाम घटनाओं की जांच कर रही है, लेकिन घटनाक्रम से लगता है कि हर जगह एक ही तरीके से हिंसा फैली है। रामनवमी का जुलूस मगरिब (शाम करीब 6-7 बजे के करीब पढ़ी जाने वाली नमाज) की नमाज या इफ्तार के समय मस्जिद या मुस्लिम बहुल इलाकों के सामने से गुजरा और ठीक वहीं टकराव हुआ है। हावड़ा में रहने वाले एक स्थानीय नागिरक खुसरू की मानें तो रामनवमी के जुलूस पहले भी निकलते रहे हैं। लोग भक्ति गीत बजाते हुए जुलूस लेकर गुजर जाते थे। इस बार कुछ अलग दिखा। बजने वाले गीत भड़काऊ थे। मिसाल के तौर पर यह गीत बज रहा था कि हिंदुस्तान में रहने पर क्या-क्या करना होगा, ऐसे ही तमाम गीत थे। रामनवमी के जुलूस में भड़काऊ गीतों का ज़िक्र छिड़ते ही वर्ष 2018 की घटना की याद आती है। उस साल कोयलांचल और औद्योगिक इलाके आसनसोल-रानीगंज में रामनवमी के जुलूस से ही बड़े पैमाने पर दंगा भड़का था।
मुस्लिम वोट के लिए राजनीति
रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता के राजनीति विज्ञान के शिक्षक सब्यसाची बसु राय चैधरी की मानें तो यह एक निश्चित पैटर्न है। 2018 में राज्य में पंचायत चुनाव या अगले साल यानी 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले इसी तरह रामनवमी के मुद्दे पर ऐसी घटनाएं हुई थी। पंचायत चुनाव हो लोकसभा चुनाव, तमाम सांप्रदायिक हिंसा एक ही पैटर्न पर हो रही है। यह महज संयोग नहीं है। सांप्रदायिक हिंसा होने पर धार्मिक ध्रुवीकरण होता है। उसका असर सामने चुनाव होने पर उसके नतीजों पर पड़ता है। 2018 के दंगे और उसके कारण होने वाले धार्मिक ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा को उस साल के पंचायत चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में मिला था। बसु रायचैधरी के मुताबिक, इस नए तरह के धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश में एक ओर जहां भाजपा का स्वार्थ छिपा है, वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का भी स्वार्थ छिपा है।
एक उदाहरण देते हुए बताते हैं कि मुर्शिदाबाद जिले की मुसलमान बहुल सागरदीघी विधानसभा सीट पर वर्ष 2023 में उपचुनाव हुआ था। वह सीट तृणमूल कांग्रेस के कब्जे में थी लेकिन इसमें वहां कांग्रेस-वामपंथी गठजोड़ का उम्मीदवार जीत गया। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस वहां करीब 50 हजार वोटों के अंतर से जीती थी, लेकिन इस बार वहां गठजोड़ के उम्मीदवार की जीत का अंतर करीब 25 हजार था यानी तृणमूल कांग्रेस के पाले से करीब 75 हजार वोट खिसक कर विपक्षी खेमे में चले गए। विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का बड़ा हिस्सा तृणमूल कांग्रेस को ही वोट देता है, लेकिन सागरदीघी के नतीजे के बाद तृणमूल कांग्रेस को इस बात की चिंता हो गई कि क्या मुस्लिम वोटर उससे दूर खिसक रहे हैं। सागरदीघी उपचुनाव का नतीजा और इससे संकेतों से शायद तृणमूल कांग्रेस को इस बात की आशंका है कि अल्पसंख्यक वोट, जिसका ज्यादातर हिस्सा उसे ही मिलता था, का विभाजन हो सकता है इसलिए धर्म के आधार पर राजनीतिक ध्रुवीकरण दोनों पक्षों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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इसी वजह से पिछले वर्ष हावड़ा के शिवपुर, हुगली के रिसड़ा और उत्तर दिनाजपुर के दालखोला में रामनवमी के जुलूस के मुद्दे पर जो कुछ हुआ, वह संयोग नहीं है। यही पैटर्न अबकी लोकसभा चुनाव में आजमाया जा रहा है। मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा इसी की एक कड़ी हो सकती है। अब यह तो पुलिस और जांच एजेंसियां ही बता सकेंगी कि आखिर रामनवमी और हिंदू त्यौहारों पर शांति व्यवस्था बनाए रखने में कहां चूक हो रही है। 500 वर्षों के बाद अयोध्या में जब रामलला को प्राण प्रतिष्ठा के साथ मंदिर में स्थापित किया गया तो देश ही नहीं, दुनियाभऱ में रहने वाले सनातनियों में उमंग, उल्लास, गर्व का क्षण दिखा। ऐसे में इसी देश के एक हिस्से बंगाल में जब रामनवमी पर हिंसा की घटना सामने आई तो इसने अंतहीन सवाल खड़े कर दिए हैं। लाजिमी है कि यह हर किसी के लिए शर्मनाक ही है। शांतिप्रिय, शिक्षित समाज ऐसी हरकतों को कतई पसंद नहीं करेगा। बंगाल सरकार के साथ-साथ केंद्र की भी जिम्मेदारी बनती है कि रामनवमी जैसे मौकों पर शांति, सद्भाव, सौहार्द की व्यवस्था बनी रहे, न कि इस पर सियासत हो।
अमित झा
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