लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही पूरे देश में सियासत का पारा गर्म हो चला है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिये पिछले कुछ महीनों से विपक्षियों द्वारा लगातार नये-नये प्रयोग और प्रयास किये जा रहे है। दूसरी ओर भाजपा की चुनावी रणनीति पिछले चुनावों की तरह “जो कहा वह किया और जो कहेंगे वह करेंगे’’ की तर्ज पर एकदम स्पष्ट और सपाट है। 2019 का चुनावी घोषणा पत्र इसका जीता-जागता सबूत भी है। 2024 के आम चुनाव में विकास परियोजनाओं से इतर जिन दो कार्यों को लेकर भाजपा देश और विदेश में चर्चित हुयी है उसमें अयोध्या में श्री रामलला का भव्य और दिव्य मन्दिर में स्थापित होना और कश्मीर के सीने में जहरीले तीर की तरह चुभ रहे अनुच्छेद 370 और 35ए की समाप्ति को माना जाता है।
बीजेपी ने अकेले दम पर लड़ी लड़ाई
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी श्रीनगर की सार्वजनिक सभा में स्वीकार किया कि धारा 370 बहुत शक्तिशाली थी, यह देश और राज्य के बीच बड़ी दीवार थी जिसे भाजपा ने हटा दिया। कभी असम्भव से लगने वाले इस कार्य को आज भाजपा अपनी चुनावी धरोहर मान रही है। तभी तो पार्टी अनुच्छेद 370 को हटाये जाने की सफलता से इतना उत्साहित है कि प्रतिफल में ’’अबकी बार 370 के पार’’ का नारा दे रही। यद्यपि गठबंधन का नारा तो 400 के पार का है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के लगभग साढ़े चार साल बाद लोकसभा का चुनाव हो रहा है। जम्मू कश्मीर की सत्ता में लम्बे अवधि तक राज करने वाले कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पी.डी.पी जैसे दल शुरू से ही अनुच्छेद 370 को हटाये जाने का विरोध कर रहे हैं लेकिन भाजपा अपने विरोधियों से अकेल दम पर सड़क से संसद तक और मीडिया से न्यायपालिका तक लड़ रही है और हर स्तर पर यह साबित कर रही है कि 370 हटने के बाद कश्मीर न केवल मुख्यधारा में लौटा है अपितु विकास की नई इबारत लिख रहा है। देश की सर्वोच्च अदालत सरकार के फैसले पर अपनी मुहर लगा चुका है। अब लोक सभा चुनाव में सरकार के फैसले पर जनता की मुहर लगनी है।
जम्मू कश्मीर को कभी आतंकवाद और अलगाववादी शक्तियों का सबसे बड़ा और सुरक्षित केन्द्र माना जाता था। सीमा पार से घुसपैठ हो या फिर पड़ोसी देश में बैठे आकाओं के इशारे पर आतंकी घटनाओं को अंजाम देना, आज दोनों में कमी आयी है। यहां से अब अलगाववादियों का जनाधार खत्म होता जा रहा है। समय समय पर जारी आंकड़ों के मुताबिक 5 अगस्त 2016 से 4 अगस्त 2019 के बीच 900 आतंकी घटनाएं हुई थीं। जिसमें 290 जवान शहीद हुए थे और 191 आम लोग मारे गए।
वहीं 5 अगस्त 2019 से 4 अगस्त 2022 के बीच 617 आतंकी घटनाओं में 174 जवान शहीद हुए और 110 नागरिकों की मौत हुई। इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी आयी है। इस सफलता के बाद भी सुरक्षा बल लगातार आतंकी ठिकानों पर छापेमारी कर उनके नेटवर्क को ध्वस्त कर रहे हैं जिसके कारण आंकड़ों में आश्चर्यजनक रूप से सुधार हो रहा है। जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक आर.आर स्वैन के अनुसार 2023 में 55 विदेशी आतंकवादी सहित कुल 76 आतंकवादी मारे गये। इतना ही नही आतंकवादियों के लिये काम करने वाले 291 ओवर ग्राउंड वर्करों को गिरफ्तार किया गया। जबकि 89 आतंकी माड्यूल का भंडाफोड़ किया गया। सुरक्षाबलों की कार्रवाई के कारण अब आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या में लगातार कमी आ रही है।
इस अवधि में नागरिक हत्यायें भी कम हुयी हैं। 2022 में 31 लोग तो 2023 तो 14 नागरिकों की हत्यायें हुयीं। सबसे प्रमुख बदलाव तो यह है कि छोटे-छोटे मामलों में हड़ताल का आवाहन करने वाले आतंकियों द्वारा अब कोई हड़ताल नहीं बुलाई जा रही है। पहले आतंकी सोशल मीडिया के माध्यम से अपना प्रचार करते थे, रायशुमारी करते थे जिसके कारण लोगों को उनसे जुड़ना पड़ता था लेकिन अब उनको कोई जबाब तक नहीं दे रहा है। राज्य के अलगाववादियों और आतंकवादियों की जड़ों में अनवरत प्रहार किया जा रहा है। 2023 में राज्य के ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों की 170 करोड़ से अधिक की कुल 99 सम्पत्तियां कुर्क करते हुये उनके 82 बैंक खातों के संचालन पर रोक लगाई गई। पुलिस प्रशासन का मानना है कि अब राज्य में स्थानीय आतंकवादियों की संख्या 30 के आसपास है जो पिछले 33 वर्षों में सबसे कम है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राज्य प्रमुख डॉ. परमेन्द्र सिंह कहते है कि 370 हटाये जाने के बाद से आतंकवादी घटनाओं में ज्यादा नियत्रंण है। आतंकवादी अब बैकफुट पर हैं, छिटफुट घटनायें जरूर हो रही हैं लेकिन अब उनके कार्यकर्ता हों या फिऱ नैतिक आधार पर समर्थन करने वाले लोग डरे हुये हैं। पिछले दो वर्षों में जो चरमपंथी घटनायें हुयीं उनमें से अधिकांश जम्मू क्षेत्र में हुयी हैं। सोशल मीडिया, फेसबुक पर अब कमेंट बंद हैं। जो सोशल मीडिया खाते चल रहे हैं उनमें से अधिकांश फेक और सीमा पार से चलाये जा रहे हैं।
टारगेटेड किलिंग्स पर लगी लगाम
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक शेष पॉल वेद का कहना है कि स्थानीय लड़के अब कम संख्या में चरमपंथी दस्तों में शामिल हो रहे हैं। जो ऑपरेशन ऑल आउट शुरू किया गया, उसमें काफी चरमपंथी मारे गये। इसका परिणाम यह हुआ कि चरमपंथियों के कथित पाकिस्तानी हैंडलर्स ने कश्मीर में टारगेटेड किलिंग्स को अंजाम देना शुरू किया लेकिन अब उस पर भी काफी हद तक काबू पा लिया गया है। राज्य में आतंकवादी घटनायें कम हुयीं तो विकास की बयार बहने लगी।
6 दिसंबर 2023 को संसद में जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पूर्व राज्य की जीएसडीपी 01 लाख करोड़ रुपये थी जो चार वर्षों में दोगुनी होकर आज 2,27,927 करोड़ रुपये हो गई है। केंद्र शासित प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, उद्योगों, कृषि, बागवानी, पर्यटन और सेवा क्षेत्रों पर जोर देने के कारण अगले पांच वर्षों में जम्मू-कश्मीर की जीएसडीपी वर्तमान स्तर से दोगुनी होने की संभावना है। इस साल की शुरुआत में जारी रिपोर्ट में कहा गया है, जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था हाल के वर्षों में राष्ट्रीय औसत से अधिक तेजी से बढ़ी है। सरकार को मिलने वाले राजस्व में हुयी यह बढ़ोत्तरी साबित करती है कि राज्य में तेजी से विकास हुआ है।
परन्तु इस विकास में केन्द्र सरकार द्वारा दिये गये दो पैकेजों प्रधानमंत्री विकास योजना और औद्योगिक विकास योजना की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिसके कारण राज्य में निवेश और रोजगार सृजन हुये जो आर्थिक विकास का आधार बना। अनुच्छेद 370 हटाये जाने के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल याचिका पर सुनवायी के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि 5 अगस्त 2019 के बाद से ही निवेश आने शुरू हो गये और राज्य में जनवरी 2021 में नयी औद्योगिक नीति लागू किये जाने के लगभग 03 वर्ष में राज्य में 42 औद्योगिक क्षेत्रों में कुल 84,544 करोड़ रुपये के निवेश के 6,117 प्रस्ताव प्राप्त हुये हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इसमें 50,538 करोड़ जम्मू के लिये और 34,006 करोड़ कश्मीर के लिये है। इनके मूर्त रुप में परिवर्तित हो जाने पर एक लाख से ज्यादा लोगों को नौकरियां मिल जायेंगी।
जम्मू कश्मीर की गतिविधियों पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि राज्य की लाइलाज बीमारी का इलाज मोदी सरकार ने कर दिया है और अब वहां के लोगों में विश्वास लौट रहा है, लेकिन राज्य को पूर्ण विकसित होने में अभी और समय लगेगा। कुछ वर्ष पहले तक जिस जम्मू-कश्मीर से केवल बम, अपहरण और अलगाव की निराशाजनक खबरें आती थीं, स्कूलों में ताला बंदी और भड़काऊ नारे लगा करते थे। वहां अब शिक्षा, कनेक्टिविटी और विकास की चर्चा हो रही है। राज्य में दो आईआईटी, दो एम्स स्थपित हो रहे हैं, जिनमें से एक का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने अपनी श्री नगर यात्रा में किया। राज्य में 45 नर्सिंग और पैरामेडिकल कॉलेजों के अतिरिक्त मेडिकल कॉलेजों की संख्या चार से बढ़कर 12 हो गई है।
राज्य में 50 से अधिक डिग्री कॉलेज खोले जा चुके हैं। अब स्कूल कॉलेज बंद करने या अलगाववादियों के वहां जाकर नारे लगवाने की खबर अपवाद में भी नहीं आती है। अनुच्छेद 370 और 35ए की जकड़ से आजाद जम्मू कश्मीर में आए सुखद बदलाव को आमजन में स्पष्ट रूप से महसूस किया जा रहा है। अब शिक्षा का स्तर दिन पर दिन बेहतर होता जा रहा है। शिक्षण संस्थानों पर अब ताला नजर नहीं आता। किसी क्षेत्र में शिक्षण संस्थानों को जलाए जाने की वारदात भी अब बंद हो चुकी है। स्कूल-कॉलेजों में छात्रों की उपस्थिति बढ़ चुकी है। शैक्षणिक सत्र भी नियमित हो चुके हैं, परीक्षाएं निर्धारित समय पर हो रही हैं। छात्रों के हाथों में अब पत्थर नहीं किताबे होती हैं।
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर कृषि अर्थव्यवस्था पर भी आधारित है जिसमें आधे से अधिक कार्यबल कृषि गतिविधियों से जुड़े हुए हैं, इसलिए सरकार डॉ. मंगला राय समिति की सिफारिशों के आधार पर विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश करके इस क्षेत्र को बदलने का हर संभव प्रयास कर रही है। श्रीनगर के दोरे पर गये प्रधानमंत्री ने राज्य में कृषि अर्थव्यवस्था को बढावा देने के लिये 5,000 करोड़ का समग्र कृषि विकास कार्यक्रम राष्ट्र को समर्पित किया है। यह राज्य में कृषि क्षेत्र को विकसित करने के लिये दिया गया सबसे बड़ा पैकेज है। इस कार्यक्रम के तहत बागवानी,कृषि और पशुपालन को पूर्ण रुप से विकसित किया जायेगा।
370 का आवाहन लोकसभा चुनावों की घोषणा से कुछ दिन पहले स्वयं प्रधानमंत्री ने भी जम्मू-कश्मीर में हो रहे विकास को गति देने के लिये के लिए 32000 करोड़ रुपये की 220 से अधिक परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया । प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हटाई गई धारा 370 देश और प्रदेश के विकास के बीच एक दीवार और सबसे बड़ी बाधा थी जिसे बीजेपी सरकार ने रद्द कर दिया है। जम्मू-कश्मीर अब समग्र विकास की ओर बढ़ रहा है और यह सब अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कारण है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार राज्य के दौरे पर गये प्रधानमंत्री ने सभा में उमड़ी भारी भीड़ को देख कर कहा कि 370 कितना शक्तिशाली था उसके हटते ही राज्य में हर ओर शांति और विकास दिख रहा है। इसलिये अब आप लोग भाजपा को 370 के पार पंहुचाइये।
बदलेगा राजनीतिक परिदृश्य
जम्मू कश्मीर 370 की समाप्ति के बाद विकास की राह पर दौड़ रहा है। 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत जम्मू कश्मीर राज्य का बंटवारा करके दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और लद्दाख बना दिया गया। इसी के साथ ही जम्मू कश्मीर में चलने वाला अपना झंडा और अपना संविधान तथा दोहरी नागरिकता की व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया। पहले जम्मू कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 06 साल का होता था जिसे समापत करते हुये अन्य राज्यों के समान 05 साल का कर दिया गया है। प्रदेश से विधान परिषद को भी समाप्त कर दिया गया है।
जम्मू-कश्मीर में 2014 के बाद से विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं। उस चुनाव में पीडीपी और बीजेपी ने एक गठबंधन सरकार बनाई थी परन्तु 2018 में बीजेपी ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया था जिसके कारण सरकार गिर गई थी। उसके बाद जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुछेद 370 हटाकर उपराज्यपाल की तैनाती की गई और अभी तक विधान सभा चुनाव नहीं हो सके हैं। बीते दो वर्षों से जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की गई थी जो अब पूरी हो चुकी है। जम्मू कश्मीर में परिसीमन के बाद बड़े बदलाव हुये हैं। 07 विधानसभा सीटों को बढ़ाया गया है, जिसमें से 06 सीटें जम्मू और एक सीट कश्मीर में बढ़ाई गई है। जम्मू और कश्मीर विधानसभा में कुल 90 सीटें हो गई हैं। यह सीटें पाक अधिकृत कश्मीर को छोड़ कर हैं। पीओके के लिए 24 सीट पहले से तय है, जिस पर चुनाव नहीं होते हैं। पहली बार जम्मू कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीट आरक्षित की गई है। एसटी के लिए 09 सीट आरक्षित की गई है। इनमें से छह जम्मू क्षेत्र में और 03 सीट कश्मीर घाटी में आरक्षित की गई है। परिसीमन प्रक्रिया के बाद से ही जम्मू-कश्मीर के राजनैतिक दल प्रदेश में चुनाव कराने की मांग करते रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक निर्णय नहीं लिया है।
लद्दाख के अलग होने के बाद कराये गये नये परिसीमन से जम्मू-कश्मीर में संसदीय क्षेत्रों की भी सीमायें और समीकरण भी बदल गए हैं। कश्मीर एवं जम्मू में सत्ता संतुलन के लिए दोनों संभागों के इलाकों को मिलाकर राजोरी-अनंतनाग संसदीय क्षेत्र बना दिया गया है। पहले अनंतनाग सीट पर कश्मीरियों का ही वर्चस्व था। अब राजोरी-अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में राजोरी-पुंछ के सात विधानसभा क्षेत्रों के करीब 7.5 लाख वोटर शामिल किये गये हैं। इनमें हिंदुओं के अलावा पहाड़ी व गुज्जर-बकरवाल मतदाताओं की बड़ी संख्या हैं। गुज्जर समुदाय के लोग राष्ट्रवादी विचारधारा के हैं और उनकी संख्या ज्यादा है। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार द्वारा हाल के दिनों में वाल्मिकी समुदाय को अनुसूचित जाति और पद्दारी, पहाड़ी, गद्दा ब्राह्मण और कोली को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में आरक्षण देने से भाजपा को सीधा लाभ मिल रहा है। डॉ. परमेन्द्र सिंह कहते हैं कि अनन्तनाग सीट पूरी तरह से कश्मीरी केन्द्रित थी लेकिन परिसीमन के बाद हुये बदलाव का लाभ भाजपा को ही मिलेगा। श्री सिंह कहते हैं कि बदलते माहौल में तमाम गुर्ज्जर नेता नेशनल कांफ्रेस और पीडीपी से किनारा करके भाजपा में शामिल हो रहे हैं। बदले समीकरण में भाजपा इस सीट पर मुख्य दावेदार मानी जा रही है। वर्तमान में यह सीट नेकां के पास है।
370 से मिली मुक्ति के बाद राज्य में हो रहे लोक सभा चुनाव को लेकर विपक्ष ज्यादा उत्साहित नजर आ रहा है। दरअसल पिछले चुनाव में जम्मू कश्मीर की कुल पांच संसदीय सीटों में तीन नेकां और दो भाजपा के पास है। लद्दाख सीट भाजपा के पास है। विपक्षी जहां 370 को मुद्दा बना कर भाजपा को घेरने का प्रयास करेंगे। वहीं भाजपा 370 हटने के बाद हो रहे विकास का मुद्दा लेकर मैदान में है। पत्रकार अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि 370 का मामला भले ही प्रत्यक्ष तौर पर जम्मू कश्मीर से जुड़ा है, लेकिन इसके हटने का क्रेडिट भाजपा को पूरे देश में मिलेगा। इसको राज्य तक सीमित नहीं माना जा सकता है। जम्मू कश्मीर के संदर्भ में समीक्षकों का मानना है कि चुनाव परिणाम चाहे जो हों लेकिन इतना तो साफ है कि 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर राज्य में चतुर्दिश बदलाव हुये हैं, जिसका सीधा लाभ प्रदेश की जनता को मिल रहा है और राजनीतिक रूप से इसका फायदा आने वाले समय में भाजपा को मिलेगा।
बेचे जा रहे हैं दिल्ली और चंडीगढ के मकान
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद तमाम बदलाव आये हैं। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लोगों का विश्वास लौट आया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश प्रमुख डॉ. परमेन्द्र सिंह ने बताया कि 1990 के बाद जब राज्य में आतंकवाद और अलगाववाद बढ़ा, कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ तो लोग इतना भयभीत हो गये कि वह राज्य से बाहर सुरक्षित ठिकाना तलाशने लगे। इन लोगों को लगता था कि आतेंकी कभी भी राज्य से बाहर जाने का फतवा जारी कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में तमाम लोगों ने चंडीगढ़, पंजाब अथवा दिल्ली में छोटे-छोटे फ्लैट क्रय किये ताकि परिवार को लेकर भटकना न पड़े। परन्तु 370 हटने के बाद लोग आश्वस्त हो गये हैं कि अब कम से कम राज्य छोड़ने का फतवा कोई जारी नहीं कर पायेगा और लोग अपने उन फ्लैटों को बेचना शुरु कर दिए हैं।
हरि मंगल