Chaitra Navratri 2024, मीरजापुरः चैत्र नवरात्र की अष्टमी (Maha Ashtami) तिथि पर महागौरी स्वरूपा मां विंध्यवासिनी के दर्शन से विंध्यधाम में आस्था का संगम देखने को मिला। दर्शन-पूजन के बाद श्रद्धालुओं ने पुण्य की कामना की। मंगला आरती के बाद भक्तों के दर्शन-पूजन का सिलसिला शुरू हुआ, जो लगातार जारी रहा।
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी पर मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन करने के लिए सोमवार को ही देश भर से श्रद्धालु विंध्यधाम पहुंचे गए थे। रात में होटलों और गेस्ट हाउसों में विश्राम करने के बाद सुबह-सुबह गंगा स्नान कर विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए मंदिर की ओर निकल पड़े और गर्भगृह के सामने कतार में लग गए। सुबह जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई।
सोमवार की रात महानिशा पूजा के चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालु विंध्यधाम पहुंचे। मां विध्यवासिनी, मां काली और मां अष्टभुजा का दर्शन करने के बाद उन्होंने शिवपुर स्थित रामेश्वरम मंदिर और तारा मंदिर में दर्शन-पूजन कर त्रिकोण परिक्रमा पूरी की। त्रिकोणीय मार्ग पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम रहे।
ये भी पढ़ेंः- Chaitra Navratri 2024 Day 8th: अमोघ फलदायिनी हैं मां महागौरी, जानें माता का स्वरूप एवं मंत्र
श्मशान घाट व भैरो कुंड में हुई तंत्र साधना
महानिशा की रात तंत्र साधना के लिए विंध्यधाम में जगह-जगह तांत्रिकों का जमावड़ा होता था। मान्यता है कि विंध्यधाम में वाममार्गी और दक्षिणपंथी दोनों ही साधक अपनी-अपनी साधना पद्धति से तंत्र साधना कर सकते हैं। साधकों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसलिए यहां दोनों ही मार्ग के साधक फल प्राप्ति के लिए तंत्र साधना हेतु महानिशा की आराधना में लीन रहते हैं। तंत्र साधकों ने विंध्यधाम के शिवपुर स्थित रामगया श्मशान घाट, तारा मंदिर, अष्टभुजा पहाड़ी पर स्थित भैरो कुंड समेत अन्य साधना स्थलों पर साधना कर अपने आराध्य को प्रसन्न करने का प्रयास किया। तंत्र साधना के मद्देनजर विभिन्न साधना स्थलों के आसपास पुलिस की कड़ी चौकसी रही।
महानिशा में तंत्र साधना का महत्व
महानिशा में विंध्यधाम में तंत्र साधना का अपना ही महत्व है। रामगया श्मशान घाट, तारा मंदिर, काली खोह, भैरो कुंड, चितवा खोह, मोतिया तालाब, गेरुआ तालाब आदि स्थानों पर साधक ध्यान में लीन रहे।
विंध्य पर्वत पर रही रौनक
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी के दिन विंध्य पर्वत शोभायमान था। त्रिकोण करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अन्य दिनों की तुलना में दोगुनी थी। कालीखोह मंदिर से अष्टभुजा मंदिर होते हुए तारा मंदिर तक मार्ग पर दिन भर श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गयी।
माँ विंध्यवासिनी के ध्वज का महत्व
मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान देवी भगवती नौ दिनों तक मंदिर की छत पर ध्वजा में विराजमान रहती हैं। इस सोने के झंडे की खासियत यह है कि इसे सूर्य चंद्र पटाकिनी के नाम से जाना जाता है। यह निशान सिर्फ मां विंध्यवासिनी के ध्वज में ही मौजूद है।