नई दिल्ली: मध्य प्रदेश स्थित बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के 175 वर्ग किलोमीटर में 2 हजार साल पुराने अवशेष सामने आए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने यहां 26 महत्वपूर्ण मानव निर्मित गुफाएं खोजी हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से जुड़े कई रोचक तथ्य सामने आए हैं। गुफाओं में ब्राह्मी लिपि के कई अभिलेख भी मिले हैं, जिसमें मथुरा, कौशांबी, पवत, वेजभरदा, सपतनाइरिका जैसे कई जिलों के नामों का उल्लेख है। गुफाओं के साथ एएसआई को 26 पौराणिक मंदिर भी मिले हैं जहां पर भगवान विष्णु की शयन मुद्रा की प्रतिमा के साथ बड़े- बड़े वराह की प्रतिमाएं पाईं गई हैं। ये मंदिर भी लगभग 2 हजार साल पुराने हैं। प्रथम चरण में मिली गुफाओं से उत्साहित पुरातत्व विभाग अब अगले चरण के अन्वेषण की तैयारी कर रहा है।
बुधवार को नई दिल्ली में आयोजित प्रेसवार्ता में जबलपुर जोन के एएसआई सुप्रीटेंडेट शिवाकांत बाजपाई ने बताया कि 2 हजार साल पुराने पत्थर की गुफाएं मानव निर्मित हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से जुड़े कई अहम तथ्य मिले हैं। पुरातत्व की दृष्टि से यह सब कुछ काफी महत्वपूर्ण हैं। यहां मिले बौद्ध स्तूप युक्त स्तंभ एवं मनौती स्तूप ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त यहां दुनिया का सबसे विशाल वराह भी मिला है जो 6.4 मीटर ऊंचा है। अभी तक विशाल वराह एरण में स्थित था जिसकी ऊंचाई 4.26 मीटर थी।
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अन्वेषण में क्या क्या मिला -
सर्वेक्षण में 26 प्राचीन मंदिर, 26 गुफाएं, 2 मठ, 2 स्तूप, 24 अभिलेख, 46 प्रतिमाएं, 20 बिखरे हुए अवशेष एवं 19 जल संरचनाएं मिली हैं। इसके साथ साथ बांधगढ़ में कतिपय मुगलकालीन एवं शर्की शासकों के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।
क्या है बांधवगढ़ का इतिहास -
बांधवगढ़ का पौराणिक इतिहास है। इस स्थल का उल्लेख नारद पंचरात्र एवं शिव पुराण में है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम अयोध्या लौटते समय अपने छोटे भाई लक्ष्मण को यह क्षेत्र उपहार में दिया था। इस क्षेत्र से प्राप्त अभिलेखों से पता चलता है कि यह बहुत लंबे समय तक मघ राजवंश के अधीन था। मघ राजाओं तथा व्यापारियों के नाम यहां पर उत्कीर्ण ब्राह्मी शिलालेखों में पाये गए हैं। इसके अतिरिक्त बांधवगढ़ में मघ राजवंश के एवं अन्य सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।
1938 में भी गुफाओं की गई थी खोज -
एएसआई ने बांधवगढ़ के जंगलों में 1938 में भी गुफाओं की खोज की थी। उस समय के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बांधवगढ़ के अन्वेषण प्रमुख डॉ. एन पी चक्रवर्ती ने मुख्य रूप से शिलालेखों पर केन्द्रित अन्वेषण एवं अभिलेखीकरण का कार्य किया था। डॉ. चक्रवर्ती ने बघेल राजा की अनुमति से सर्वेक्षण किया। एपिग्राफिया इंडिका 31 में डॉ. चक्रवर्ती ने बांधवगढ़ के शिलालेखों को प्रकाशित किया है एवं डॉ. मिराशी ने कलचुरी चेदि युग के शिलालेख में बांधवगढ़ के नागरी शिलालेख को भी प्रकाशित किया है।
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