लखनऊः पितृ विसर्जनी अमावस्या बुधवार को होगी। आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू हुआ 15 दिनों का पितृपक्ष बुधवार को अमावस्या से समाप्त हो जाएगा। आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की इस अमावस्या का बड़ा महत्व है। इस अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस तिथि में परिवार के जिन दिवगंतों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, उनका भी श्राद्ध-तर्पण किया जा सकता है। पितरों के निमित्त यह तिथि दान-पुण्य के लिए बड़ी पुनीत मानी जाती है। अमावस्या बुधवार को 4 बजकर 34 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसी समय पितरों की विदाई हो जाएगी। इसके बाद देवी की पूजा के लिए घर को धोकर कर शुद्ध कर लिया जाता है। शाम को नवरात्रि पूजन की सामग्री को खरीदा जा सकता है।
अमावस्या तिथि को इस तरह करें सर्वपितृ श्राद्ध
अमावस्या तिथि में सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है। जिन पितरों की पुण्यतिथि परिजनों को ज्ञात न हो या जिनका श्राद्ध पितृपक्ष के इन दिनों में न किया गया हो, तो उनका श्राद्ध, दान एवं तर्पण इसी दिन कर सकते है। अमावस्या को दिन में गोबर के कंडे जलाकर उस पर खीर की आहुति दें। उस पर जल के छींटे देकर हाथ जोड़े और पितरों को प्रणाम करें। इसके अलावा गाय को ग्रास, कुत्ते और कौवे को भी भोजन देने से पितृ शान्त होते है।
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धर्मग्रथों के अनुसार कोई भी व्यक्ति तीन पीढ़ी पितृपक्ष में और तीन पीढ़ी मातृ पक्ष में तर्पण कर सकता है। जो व्यक्ति अपने पितरों का अमावस्या को श्राद्ध दान करते हैं वे पितर दोष से मुक्त हो जाते हैं। दान से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और व्यक्ति के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाता है।
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