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दान पुण्य करने से मिल जाती है भवसागर से मुक्ति

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नई दिल्लीः हिंदू धर्म में दान का बड़ा ही विशेष महत्व है। हिंदू पूजा-पाठ या अनुष्ठान को तब तक पूरा नही माना जाता है जब तक की दान न दिया जाए। हिंदू मान्यताओं में ऐसा भी माना जाता है कि दान पुण्य करने से सभी तरह के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है। दान करते समय व्यक्ति को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि दान हमेशा निस्वार्थ भाव से ही करें। दान करने वाले व्यक्ति का मन भी शुद्ध होना चाहिए।

हिंदू धर्मशास्त्रों में पांच तरह के दान का वर्णन किया गया है। ये पांच दान हैं, विद्या, भूमि, कन्या, गौ और अन्न दान। विद्या धन का दान गुरू अपने शिष्य को देते हैं। इस दान से शिष्य का पूरा जीवन सुखमय होता है। गुरू जब अपने शिष्य को विद्यारूपी दान देता है तो उसका मन बिल्कुल ही निस्वार्थ होता है। इस दान से मनुष्य में विनय और विवेकशीलता के गुण आते हैं। जिससे वह समाज में एक कुशल नागरिक बनकर सबका कल्याण का भाव रखते हुए सेवा करता है। इसके साथ ही विद्या धन बांटने से बढ़ता है। हिंदू धर्म कथाओं के मुताबिक राजा या श्रेष्ठ व्यक्ति भूमि का भी दान करते थे। राजा हमेशा यह दान ऋषियों या जरूरतमंद लोगों को करते थे ताकि इससे समाज का भी कल्याण हो सके।

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हिंदू धर्म में कन्या दान को महादान बताया गया है। यह माता-पिता अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर करते हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक जीवन में एक कन्यादान अवश्य करना चाहिए। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में हर त्यौहार या अनुष्ठान के बाद अन्न का दान करने की परंपरा है। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और दान करने वाले पर भगवान की कृपा भी हमेशा रहती है। इसलिए हिंदूओं के किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के संपन्न होने पर दान के पश्चात भोजन कराने की भी परंपरा है जिससे अनुष्ठान कराने वाला व्यक्ति शुभ फल प्राप्ति को अपनी स्वेच्छा से सभी को भोजन कराकर तृप्त करता है। इसके साथ ही गौदान का भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि गौदान करने से भवसागर से मुक्ति मिल जाती है और जन्म-मरण के बंधन से भी दान करने वाला व्यक्ति छूट जाता है।