दिल्ली राजनीति

“कच्चातिवु” पर BJP का दांव पड़ा उल्टा, कांग्रेस ने उठाया 9 साल पुराना ये मुद्दा

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नई दिल्लीः कच्चातिवु द्वीप (Katchatheevu island) को लेकर कांग्रेस पर हमला बोलकर सियासी लाभ लेने की कोशिशों में जुटी भाजपा सरकार का दांव उल्टा पड़ गया है। अब कांग्रेस ने पलटवार करते हुए भाजपा पर एक नया आरोप मढ़ दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का कहना कि नौ साल पहले हुए लैंड करार के दौरान बीजेपी सरकार ने कच्चातिवु से कहीं अधिक जमीन बांग्लादेश को दे डाली है । 

इसको लेकर उन्होंने एक्स पर पोस्ट डालकर भाजपा को घेरने का काम किया है, जिसमें उन्होंने लिखा कि ‘साल 2015 में मोदी सरकार ने काफी सारा भारतीय क्षेत्र दिया, जिसके बदले में उसे काफी कम मिला है। इससे भारत की 10,051 एकड़ जमीन घट गयी। जयराम रमेश के इस आरोप के बाद भाजपा की मुश्किलें बढ़ गयी हैं ।1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने में भारत की सबसे अहम भूमिका रही, लेकिन बांग्लादेश की आजादी से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच सीमा विवाद गंभीर बना हुआ है । 

लंबे समय तक लंबित पड़ा रहा  सीमा से जुड़ा मामला 

दरअसल बंटवारे के समय कोई एक निश्चित सीमा क्षेत्र तय करके मामले का निपटारा नहीं हो सका था । सीमा से सटे कई ऐसे क्षेत्र थे, जो दोनों देशों के बीच ऐसे पड़ते थे, जिन पर कोई भी देश पूरी तरह से अपना दावा नहीं कर पा रहा था । इस वजह से सीमा से जुड़ा यह मामला लंबे समय से लंबित रहा। जब 1974 में कांग्रेस की सरकार आई तो लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट (एलबीए) तैयार हुआ, जिसका मकसद ऐसे ही मसलों का निपटारा करना था, लेकिन एलबीए सदन में पारित हुए बिना वैसे ही पड़ा रहा । 

इस एग्रीमेंट में कुल 160 विदेशी अंतः क्षेत्र की बात पर निर्णय होना था, जो एक-दूसरे को दिये जाने थे। इस मामले को बांग्लादेश ने अपनी तरफ से तो हरी झंडी दे दी, लेकिन भारत ने चुप्पी साधे रखी। इस पर आधिकारिक सहमति का मतलब अपनी जमीनों का बंटवारा करना था । 2011 में जब मनमोहन सिंह की सरकार आई तो बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने फिर इस मुद्दे पर बात की थी। तब प्रस्ताव बनाया गया कि भारत को बांग्लादेश से पौने तीन हजार एकड़ जमीन मिलेगी, जबकि बदले में दो हजार एकड़ जमीन उसे ढाका को देनी होगी, लेकिन तब भी मुद्दे पर सहमति नहीं बन पायी । इसके बाद जब 2014 में भाजपा की सरकार बनी तो सीमा से जुड़े विवादों को निपटाने में तेजी दिखायी जाने लगी। 2015 में भाजपा में सबकी सहमति से एलबीए सदन में पास हो गया । 


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इस तरह हुआ समझौता


इससे पहले उन सभी इलाकों के नेताओं से भी बात की गयी, जिनके पड़ोस में विवादित इलाके पड़ते थे। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का भी राजीनामा लिया गया था, क्योंकि राज्य से सटे कुछ इलाके भी विवादित थे। इस करार के अनुसार कुल 162 जगहों का लेन-देन हुआ, जिसमें भारत ने बांग्लादेश को 111 जगहें दीं, जिनका क्षेत्रफल 17 हजार एकड़ से कुछ अधिक है। वहीं बांग्लादेश ने हमें 51 इलाके दिए थे, जिनका क्षेत्रफल 07 हजार एकड़ से कुछ अधिक है। इस तरह जमीनों के हिसाब से 10 हजार एकड़ क्षेत्रफल जमीन का हमें नुकसान हुआ है। हालांकि इस समझौते के बाद 14 हजार से अधिक बांग्लादेशियों को हमने भारत की नागरिकता दी और उधर बांग्लादेश ने 36 हजार लोगों को अपने यहां की नागरिकता देकर समझौते का पालन किया । 

गौरतलब है कि भारत और बांग्लादेश लगभग 4,000 किमी. की सीमा शेयर करते हैं। यह सीमा रेखा आजादी के समय ही सिरिल जॉन रेडक्लिफ ने खींची थी, लेकिन तब बांग्लादेश पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा था ।


क्या है कच्चातिवु विवाद ?


दरअसल एक आरटीआई के माध्यम से यह बात सामने आयी कि, 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था । तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने द्वीप को लेकर एक आरटीआई आवेदन दिया था, जिसका जवाब सामने आने के बाद सियासी घमासन मच गया है। पीएम मोदी ने 31 मार्च को एक ट्वीट में इसका जिक्र किया है । उन्होंने लिखा, आंखें खोलने वाली और चौंका देने वाली बात । 

नए तथ्यों से पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया। इससे हर भारतीय नाराज है और लोगों के मन में यह बात बैठ गई है कि हम कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना 75 सालों से कांग्रेस का काम करने का तरीका रहा है।

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