
जम्मू-कश्मीर में नेताओं ने जमीन घोटाला कर नया इतिहास रचा है। मानो या न मानो, भ्रष्टाचार का यह ताजा और सर्वाेत्तम उदाहरण है। अब सरकार ही तय करे कि इनको कौन सी जगह पर सम्मानित किया जाए। पीडीपी और कांगे्रस के नेताओं ने सरकार का काम भी तमाम किया है। जिस सरकारी जमीन को गरीबों के हाथ सौंपना था, उसे अपने नाम करवा लिया। रिश्तेदार कम जमीन वाला रहता तो बैलेंस बिगड़ जाता, इसलिए कुछ उनके नाम भी करवा दिया।
आखिर गरीब ढंूढ़ने में नेताओं और अफसरों को मशक्कत करनी पड़ती। सरकारी पैसा भी इसमें खर्च हो जाता। कुछ लंपट और लफंगे अफसर बिल पास करने में आना-कानी करते, लिहाजा नेताओं और अफसरों ने बड़ी सूझबूझ के साथ सरकार के 25 हजार करोड़ रुपये की जमीन का वारा-न्यारा कर दिया। मीडिया के लोगों को इसमें पता नहीं क्यों दिक्कत हो रही है। वह इसे घोटाला बता रहे हैं। यह हर काम में टांग अड़ा ही देते हैं।
2001 में राज्य भूमि अधिनियम बनाया गया था। इसी एक्ट की आंड़ में पूरे जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों एकड़ भूमि पर अवैध रूप से प्रभावशाली राजनेताओं, व्यापारियों, नौकरशाहों और न्यायिक अधिकारियों द्वारा कब्जा कर लिया गया था। 1990 से पहले इन जमीनों को वापस ले पाना सरकार के लिए मुश्किल हो रहा था। 1991 में तय हुआ कि यह जमीन वापस ली जाए। एक्ट का दूसरा उपयोग पैसा इकट्ठा करना था, ताकि उसे जम्मू-कश्मीर के पॉवर प्रोजेक्ट में लगाया जा सके। राज्य में सरकारें बदलती रहीं। नेता और अफसरों को इसका आनंद मिलता रहा। नाग की तरह यह लोग जमीन पर कंुडली मारकर हमेषा के लिए बैठ गए थे। सीबीआई, जम्मू-कष्मीर के एलजी और उच्च न्यायालय को भी नेताओें के कारनामे खटकते रहे।
जम्मू-कश्मीर बैंक के चेयरमैन रह चुके हसीब दराबू पीडीपी के बड़े नेता माने जाते हैं। वह राज्य के वित्त मंत्री भी रह चुके हैं। वहीं केके अमला कांग्रेस के बड़े नेता हैं। श्रीनगर में उनका काफी नामचीन होटल भी हैं। मो. शफी पंडित मुख्य सचिव रैंक के ऑफिसर रह चुके हैं। यह वही नाम हैं जो अब कीचड़ में डुबोये जा रहे हैं। मतलब यह कि रोशनी प्रोजेक्ट वाली जमीन के ये लोग ही ताजे भ्रष्टाचारी हैं। उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद 25,000 करोड़ रुपये के “रोशनी” भूमि घोटाले के संबंध में अब तक तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए हैं। जम्मू विकास प्राधिकरण के अधिकारी भी जांच के दायरे में हैं।
देष में भ्रष्टाचार इतना पुण्य कार्य बन गया है कि लोग मौका नहीं गंवाना चाहते हैं। असल में अपेक्षाएं इतनी बढ़ गई हैं। गाड़ी, बंगला, फार्महाउस और बीवी को भारी-भरकम गहने चाहिए ही चाहिए। बढ़ती महंगाई और बच्चों के प्रति जवाबदेही को देखते हुए कुछ भ्रष्टाचार जस्टिफाई कर लेगा। दरअसल, भ्रष्टाचार में भी बड़ा कंपटीशन है। पूर्व में हुए घोटाले इसका सबूत हैं। यह भ्रष्टाचारियों की बरकत की चीज है। चारा घोटाला वालों की बरक्कत देख कोयला घोटाला हुआ। दूसरों को इसमें कौवा काट गया तो वह ताबूत पर लपक बैठे। इसके बाद तो उमड़-घुमड़ कर भ्रष्टाचार नाचने लगा। मंत्री से संतरी, अधिकारी से कर्मचारी, विधायक से पूर्व विधायक बगुले की तरह सरकारी खजाने को निहारने लगे।
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दुनिया तरक्की कर रही है। हम कितनी तरक्की कर रहे हैं ? इसे कुछ देश की ओर निहार कर परखा जा सकता है। द्वितीय विश्न युद्ध के दौरान तमाम देष तबाह हो गए थे। भारत में उन दिनों अंगेे्रजों का कब्जा था। धीरे-धीरे वह चले गए। विरासत में सड़कें, अस्पताल, जहाज और रेल तो दे ही गए थे। जर्मनी, जापान, इजराइल और पोलैंड को देख लें तो यही लगता है कि हम तो जहां थे उससे कुछ ही आगे बढे़ हैं। ऐसा लगता है कि हमारे देष में भ्रष्टाचार नहीं रहेगा तो सच्चाई का दम अकेलेपन में घुटने लगेगा। कड़े कानून बन नहीं रहे हैं। इसका कारण साफ है कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए इच्छाषक्ति नहीं बन पाती। चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत भी खरी उतरती है। आपराधिक मामले में कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी नहीं है, जिसका कोई न कोई सांसद या विधायक गंभीर मुकदमा न झेल रहा हो।