बलियाः महर्षि वाल्मीकि का आश्रम बलिया में था। यहीं पर माता सीता ने निर्वासित जीवन जीया था। इसी कारण जिले का नाम बलिया पड़ा। इसके सापेक्ष कई पौराणिक व ऐतिहासिक साक्ष्य मिलते हैं।
प्रदेश सरकार के निर्देशानुसार जिले में महर्षि वाल्मीकी आश्रम पचेव और महर्षि विश्वामित्र के साथ श्रीराम-लक्ष्मण से जुड़े सिधागर घाट, लखनेश्वर डीह, रामघाट नगहर, कामेश्वरधाम कारो, सुबाहु डीह सुजायत, भरौली, उजियार, सीताराम प्रमोद वाटिका सुरेमनपुर, खपड़िया बाबा आश्रम श्रीपालपुर, ठकुरी बाबा कर्णछपरा, बड़ी मठिया सतनी सराय, हनुमानगढ़ी, रामजानकी मंदिर, प्राचीन हनुमान मंदिर गुरुद्वारा रोड सहित अनेक स्थानों पर शनिवार को कार्यक्रम आयोजित किए गए।
वाल्मीकि आश्रम के संबंध में शोधकर्ता व साहित्यकार शिव कुमार सिंह 'कौशिकेय' ने बताते हैं कि वैसे तो वाल्मीकि आश्रम को लेकर कई अन्य स्थानों के बारे में दावे किए जाते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में स्वयं अपने आश्रम का उल्लेख करते हुए लिखा है कि हमारा आश्रम तमसा तट पर स्थित है जिसके समीप ही दक्षिण में गंगा नदी बहती है।
वाल्मीकी आश्रम गंगा नदी के उत्तर तट पर था और यह अयोध्या राज्य की दक्षिण सीमा पर था। इसके पूर्व दिशा गंडकी नदी के पार राजा जनक का मिथिला राज्य प्रारंभ था। सीता को जंगल में छोड़ने लक्ष्मण जी अयोध्या से रथ पर लेकर आए हैं। वह ब्रह्ममुहूर्त में निकले और संध्या काल में गंगा तट पर पहुंच गए। अयोध्या से वाल्मीकी आश्रम की दूरी रथ से 12 घंटे में पूरी हो जानी चाहिए। यदि तमसा तट पर गंगा नदी के निकट आश्रम और अयोध्या से आश्रम की दूरी के तर्क को मानते हैं तो उपरोक्त सभी स्थानों के दावों पर प्रश्नचिह्न खड़े हो जाते हैं।
कौशिकेय बताते हैं कि रामायण के भूगोल पर भी बहुत अनुसंधान हुआ है और आज भी हो रहे हैं। 'कनिङ्घम की एनशिएंट डिक्शनरी', 'श्रीदेके ज्योग्रफिकल डिक्शनरी' में इस पर कई रिसर्च हैं। लंदन के 'एशियाटिक सोसायटी जर्नल' में भी लेख छपा है। महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के चौदहवें सर्ग के श्लोक 76 में लिखा है कि 'तमसा तट पर ही वाल्मीकी आश्रम था।' इनकी ही बात को भवभूति जी स्पष्ट कर दिया है 'अथ सः ब्रह्मर्षि कदा मध्यं दिनं सावनाय नदीं तमसामनुप्रपन्नः।'
बिगहीं-बहुआरा गांव में सीता ने गुजारा था निर्वासन काल
पूर्वकाल में यहां वाल्मीकी आश्रम के होने का सांस्कृतिक अवशेष बलिया जिले की सदर तहसील के पचेव गांव में स्थित माता सीता पचेव मंदिर है। प्राचीन मंदिर में आदमकद माता सीता की दो छोटे बच्चों कुश और लव के साथ लाल बलुआ पत्थर की बनी प्रतिमा स्थापित है। इस गांव के निकट ही बिगही, बहुआरा, सीताकुण्ड गांव है। स्थानीय लोक परंपराएं भी प्रमाणित करती हैं कि सीता ने अपना निर्वासन काल यहां स्थित वाल्मीकि आश्रम पर बिताया था। पचेव गांव में जो माता मंदिर है, यहां स्थानीय महिलाएं दाल भरी पूरी चढ़ाती हैं। जिसे बहू के आने पर विशेष रूप से घरों में बनता है। इसके अलाव यहां दाल-भात, कढ़ी-बरी व बजका आदि विशेष प्रकार के भोज्य पदार्थों को चढ़ाने की परम्परा है। स्थानीय लेखकों में स्व. कुलदीप नारायण सिंह झड़प, स्व. बाबू दुर्गा प्रसाद गुप्त ने अपनी पुस्तक 'बलिया और उसके निवासी' तथा सूचना विभाग बलिया द्वारा प्रकाशित वार्षिक पत्रिकाओं में भी उल्लेख है कि यहां पर वाल्मिकी आश्रम था। जहां सीता जी ने कुश-लव को जन्म दिया था। इसके कारण ही बहुआरा (बहू का निवास स्थान) नाम पड़ा।
सीताकुण्ड में माता सीता करती थीं स्नान
सीताकुण्ड गाँव के बारे में बताया जाता है कि छोटी सरयू-तमसा नदी के खादर से बने, इस कुण्ड में सीता जी स्नान करने आती थीं। इन अभिलेखीय और परिस्थितिजन्य भौगोलिक साक्ष्यों के अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि जिस वाल्मीकी आश्रम के जंगल में माता सीता जी को रामानुज लक्ष्मण जी ने छोड़ा था। वह तत्कालीन अयोध्या और मिथिला राज्य की सीमा पर स्थित है। अयोध्या राज परिवार का कोई भी व्यक्ति गर्भवती महारानी सीता को वन में छोड़े जाने के पक्ष में नहीं था। किन्तु एक राजा की मर्यादा स्थापित करने के लिए श्रीराम ने सीता जी को जंगल में छुड़वाया था। पूर्व काल में गंडकी नदी अयोध्या और मिथिला राज्य की सीमा का विभाजन करती थी। गंडकी नदी का प्राचीन प्रवाह मार्ग इस स्थान से मात्र बीस किमी दूर था। वर्तमान समय में गंडकी नदी यहां से लगभग पचास किमी पूर्व दिशा में छपरा बिहार में है।
बलिया के पचेव गांव में सीता ने दिया था लव-कुश को जन्म
वाल्मीकीय रामायण, रघुवंश महाकाव्य, बलिया गजेटियर और स्थानीय लेखक, साहित्यकारों की पुस्तकों, लोक परंपराओं एवं श्रुतियों के विवेचन के उपरांत यह तथ्य मिलता है कि सीता जी ने बलिया जिले के बिगहीं, सोनवानी व बहुआरा के समीप स्थित पचेव के वाल्मीकी आश्रम में अपने पुत्रों कुश-लव को जन्म दिया था। पचेव में लाल बलुआ पत्थर की बनी चार फीट ऊंची सीता जी की प्रतिमा स्थापित है। इनके दोनों तरफ दो बालकों कुश और लव की मूर्ति बनी है। यह तीनों प्रतिमाएं एक ही पत्थर में बनीं हैं। शिल्पकला के हिसाब से यह प्रतिमा लगभग 300-350 वर्ष पुरानी है। यहां सीता नवमी के अवसर पर महीने भर का मेला लगता था, जो स्थानीय कारणों से बंद हो गया है । यह स्थान आज भी बियाबान जगह पर खेतों के बीच में स्थित है।