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Azadi Ka Amrit Mahotsav : ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के बिगुल फूंके जाने के 10 दिनों में ही आजाद हो गया था यूपी का यह जिला

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बलियाः देश की आजादी के लिए चले लम्बे आंदोलन में बलिया का विशिष्ट स्थान रहा है। सन 1942 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का बिगुल फूंके जाने के दस दिनों में ही यह जिला आजाद हो गया था। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ का नारा दिया। नौ अगस्त 1942 की सुबह होने से पहले ही बम्बई (मुंबई) में मौजूद सभी कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी खबर जब बलिया तक पहुंची तो क्रांतिकारी उबल पड़े। हालांकि इस दौरान सेनानियों व उनके परिजनों को तमाम यातनाएं झेलनी पड़ीं लेकिन आजादी मिलने तक कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था। सेनानियों ने संचार व यातायात व्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया था।

स्कूलों, कालेजों, सरकारी कार्यालयों तथा प्रमुख बाजारों का कामकाज पूरी तरह ठप करा दिया गया था। हड़ताल, घेराव तथा अवरोध उत्पन्न कर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के नाक में दम कर दिया था। 11अगस्त को बलिया में आजादी का जुलूस निकला। 12 अगस्त को बलिया व बैरिया में विशाल जुलूस निकला। 13 अगस्त को बनारस से बलिया पहुंची ट्रेन से आये छात्रों ने चितबड़ागांव स्टेशन को फूंक दिया। 14 अगस्त को मिडिल स्कूल के बच्चों के जुलुस को सिकंदरपुर में थानेदार द्वारा बच्चों को घोड़ों से कुचला गया।

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14 अगस्त को ही चितबड़ागांव, ताजपुर, फेफना में रेल पटरियों को उखाड़ दिया गया। वहीं बेल्थरारोड में मालगाड़ी को लूट कर पटरियों को उखाड़ दिया गया। इसके बाद बलिया रेल सेवा से पूरी तरह से कट गया। अंग्रेजी हुकूमत के बलिया में पंगु हो जाने के बाद 20 अगस्त 1942 को नए प्रशासन की विधिवत घोषणा कर दी गई। ब्रिटिश हुकूमत के कलेक्टर जे सी निगम ने बाकायदा चित्तू पांडेय को प्रशासन का हस्तांतरण किया और चलते बने। जिला कारागार से सभी स्वतंत्रता सेनानियों को आजाद कर दिया गया। बाद में शेरे बलिया के नाम से मशहूर हुए चित्तू पांडे यहां के पहले जिलाधिकारी बने। अंग्रेजी हुकूमत के समानांतर बलिया में 14 दिनों तक सरकार चली।

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