देवघर: झारखंड के देवघर जिले में स्थित रावणेश्वर बाबा वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग सभी 12 ज्योतिर्पीठों से अलग महत्व रखता है। देश के अन्य ज्योतिर्लिंगों में भी दर्शन पूजन का विधान है। वहीं बैद्यनाथ धाम (Baidyanath Dham) अपने आप में अलग-अलग मान्यताओं के कारण जाना जाता है। शास्त्रीय विद्वान बताते हैं कि यहां ज्योतिर्लिंग की स्पर्श पूजा का विधान प्रचलित है। कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Dham) की पूजा स्पर्श करके की जाती है, "पंचशूल" के स्पर्श मात्र से ही भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है, जिसके कारण इसे मनोकामना ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
शास्त्रीय विद्वानों, धर्माचार्यों का कहना है कि ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व शिवपुराण में बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई लगातार छह महीने तक शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है, तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता है। बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल को लेकर धार्मिक विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में रावण की लंकापुरी के प्रवेश द्वार पर पंचशूल सुरक्षा कवच के रूप में स्थापित था।
मंदिर के तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना जानता था, जबकि वह भगवान राम के वश में भी नहीं था। जब विभीषण ने भगवान राम को यह युक्ति बताई, तभी श्रीराम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सके। शास्त्रीय विद्वान बताते हैं कि पंचशूल के सुरक्षा कवच के कारण ही बाबा बैद्यनाथ (Baidyanath Dham) स्थित यह मंदिर आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा से प्रभावित नहीं हुआ है।
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