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आखिर भगवान शिव क्यों धारण करते हैं त्रिशूल, जानें इसके पीछे का रहस्य

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नई दिल्लीः श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना करने से साधक के सभी कष्ट दूर हो जाते है। भगवान शिव स्वयं महाकाल हैं। वह इस पूरी सृष्टि के संचालक और संहारक कहे जाते हैं। पूरी सृष्टि का एकमेव स्त्रोत शिव ही है। शिव का उग्र स्वरूप सृष्टि का विनाश कर सकता है। भगवान शिव की तीसरी आंख खुलना सृष्टि के विनाश का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद भी भगवान शिव त्रिशूल धारण करते हैं। भगवान शिव के त्रिशूल का नाम ‘पिनाक’ है। भगवान शिव के त्रिशूल में सत, तम, रज तीनों गुणों पाये जाते है। साथ ही यह सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का अंत करता है। शिव के हाथ में त्रिशूल के होने का यह अर्थ है कि वह तीनों गुणों से ऊपर हैं, अर्थात निर्गुण हैं। त्रिशूल आपको सत्य का मार्ग दिखाता है और उस पर चलने के लिए प्रोत्साहित भी करता है। त्रिशूल मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक है। भगवान शिव के त्रिशूल धारण करने के कई कारण हैं।

भगवान शिव के त्रिशूल ‘पिनाक’ के तीन शूल सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार के प्रतीक हैं और यह तीनों चीजें उनमें ही समाहित है।

भगवान भोलेनाथ का त्रिशूल मानव जीवन के तीनों प्रकार के कष्टों दैहिक, दैविक और भौतिक का विनाशक है। इसके साथ ही त्रिशूल महाकाल के तीनों कालों वर्तमान, भूत और भविष्य का भी प्रतीक है।

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भगवान महादेव का त्रिशूल त्रिदेवों का सूचक भी है, जो भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात् रचनाकार, पालनहार और विनाशक के रूप को भी दर्शाता है।