लखनऊः परिवहन विभाग के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों में तैनात स्मार्ट चिप कंपनी के 300 कर्मियों को 03 माह से अधिक समय से वेतन नहीं मिला है। कर्मचारियों को समय से वेतन भुगतान न किए जाने को लेकर ही प्रमुख सचिव परिवहन ने कंपनी पर एफआईआर कराने का आदेश दिया है।
दरअसल, स्मार्ट चिप कर्मियों को कंपनी द्वारा वेतन न दिया जाना कोई अजूबा मामला नहीं है, बल्कि अजीब बात यह है कि परिवहन विभाग मुख्यालय के अफसरों के संज्ञान में होते हुए भी इस मामले में अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? वास्तविकता यह है कि स्मार्ट चिप कंपनी ने अपने कर्मियों को कभी भी समय से वेतन का भुगतान किया ही नहीं। समय से वेतन न मिलने के बावजूद स्मार्ट चिप के किसी कर्मी ने कभी आवाज भी नहीं उठाई।
ये भी पढ़ें..रक्षाबंधन पर छाया भद्रा का साया, संशय के बीच जानें कब...
सूत्रों की मानें तो क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों में तैनात स्मार्ट चिप कर्मियों को वेतन देने की बजाय उल्टा कंपनी उनसे पैसे लेती है। इसकी वजह यह है कि दलालों से सांठ-गांठ कर स्मार्ट चिप कंपनी के कर्मी डीएल आवेदकों से उगाही में लगे हुए हैं। उगाही में आकंठ डूबे स्मार्ट चिप कर्मियों को क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के अफसरों के साथ परिवहन विभाग मुख्यालय के अफसरों का भी संरक्षण प्राप्त है। इसकी बड़ी वजह यह है कि वेतन न मिलने के बावजूद कर्मी 10-10 साल से इसी काम में तल्लीनता से लगे हुए हैं। ऐसा भी नहीं है कि स्मार्ट चिप कर्मियों के आवेदकों से उगाही व अभद्रता की शिकायत अफसरों तक नहीं पहुंचती है, बल्कि रोजाना ही ऐसी शिकायतें अफसरों तक पहुंचती हैं और अफसर कार्रवाई करने की बजाय कर्मियों को संरक्षण प्रदान करते हैं। कार्रवाई का डर न होने के चलते स्मार्ट चिप कर्मी बेधड़क उगाही में लगे रहते हैं।
टीपीनगर आरटीओ में 10-10 साल से जमे कर्मी -
परिवहन विभाग ने स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस की व्यवस्था वर्ष 2012 में शुरू की थी। उस दौरान मेसर्स रोजमार्टा को यह काम मिला था। उक्त कंपनी के साथ अनुबंध पूरा होने के बाद नए सिरे हुए टेंडर में मेसर्स स्मार्ट चिप को यह काम मिला। टीपीनगर आरटीओ कार्यालय में वर्ष 2012 में डीएल के काम के लिए जो कर्मी तैनात किए गए थे, कंपनी बदलने के बावजूद वर्तमान समय में अधिकांश वही कर्मी तैनात हैं। 10-10 साल से यह कर्मी टीपीनगर आरटीओ कार्यालय में जमे हुए हैं। सुपरवाइजर समेत अन्य कर्मियों का वेतन बमुश्किलन 05 से 07 हजार रुपए के बीच है, लेकिन इनका कार्यालय में प्रवेश लग्जरी चार पहिया वाहन से होता है। ऐसे में 10-10 साल से जमे इन कर्मियों की कमाई का अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है।
अनुबंध के बाद कंपनी ने नहीं किए कई काम -
मेसर्स स्मार्ट चिप कंपनी को अनुबंध के तहत जो काम करने थे, वह कंपनी ने नहीं किए। इनमें क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों में हार्डवेयर इंस्टालेशन न किया जाना, स्मार्ट चिप कर्मियों को पुलिस वेरीफिकेशन न कराया जाना, क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय में अतिरिक्त काउंटर के साथ कर्मियों की तैनाती न किया जाना शामिल है। प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में आयोजित रिव्यू कमेटी की बैठक में 11 बिंदु शामिल किए गए थे। बैठक में आरटीओ, एआरटीओ से स्मार्ट चिप कर्मियों की लिस्ट लेकर जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक से उनका पुलिस वेरीफिकेशन कराया जाना सुनिश्चित किया गया। बैठक में प्रदेश भर में ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) बनाने का काम करने वाली कार्यदाई संस्था मेसर्स स्मार्ट चिप प्रा. लि. पर लापरवाही को लेकर एफआईआर दर्ज कराने का आदेश प्रमुख सचिव परिवहन ने दिया।
20 दिन में पहुंच रहा डीएल, 94 लाख का ठोंका जुर्माना -
आवेदकों के पते पर डीएल डिलीवरी करने में देरी पर स्मार्ट चिप कंपनी पर जुर्माना भी लगाया गया। आवेदकों के पास नियमतः सात दिनों में ड्राइविंग लाइसेंस पहुंच जाना चाहिए, लेकिन वर्तमान समय में आवेदकों के पते पर डीएल पहुंचने में 20 दिनों का समय लग जा रहा है। विभागीय समीक्षा बैठक के दौरान इस बात का संज्ञान खुद परिवहन आयुक्त ने लिया। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए स्मार्ट चिप कंपनी पर विभाग ने शर्तों का उल्लंघन करने और डीएल डिलीवरी में होने वाली बेवजह देरी के लिए 94 लाख का जुर्माना ठोंका है। परिवहन आयुक्त ने उक्त कंपनी को दी जाने वाली भुगतान राशि में उपरोक्त जुर्माने की कटौती करने के निर्देश दिए हैं।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)